Tuesday, December 13, 2011

है तो है ...


Tuesday, December 6, 2011

कुछ दूर तुम भी साथ चलो ....

नहीं आसान सफ़र ,कुछ दूर तुम भी साथ चलो 
बड़ा मायूस शहर ,कुछ दूर तुम भी साथ चलो

जानता हूँ नहीं ये साथ उम्रभर के लिए 
फिर भी चाहता हूँ मगर कुछ दूर तुम भी साथ चलो

वो वादियां वो नज़ारे की हम मिले थे जहां
बुला रही वो डगर कुछ दूर तुम भी साथ चलो


 
थक चुका हूँ अय ज़िन्दगी तेरा साथ देकर
कब आये आखरी पहर कुछ दूर तुम भी साथ चलो

इस वीरान भीड़ के बीच  मैं बड़ा तनहा हूँ
खो गया हमसफ़र कुछ दूर तुम भी साथ चलो

फेर कर मुँह जब खड़ी थी ज़िन्दगी मेरी तरफ
तभी तुम आये नज़र कुछ दूर तुम भी साथ चलो

नहीं मरता कोई दो बार प्यार करने से 
आओ आजमाए धीमा ज़हर ,कुछ दूर तुम भी साथ चलो 

नरेश मधुकर ©

Thursday, November 24, 2011

रहने को अपना घर ही नहीं ...


कहने को सारा जहाँ मेरा ,
रहने को अपना घर ही  नहीं  ...

जीने को चाहिए प्यार बहुत,
बस बेजुबान पत्थर ही नहीं  ....

किस किस को व्यथा मैं बतलाऊ
किस किस को घाव मैं दिखलाऊ

आकाश खुला है बुला रहा,
उड़ने को मेरे पर ही नहीं ...

जब जब बुरा वक़्त घिर आया
तब रिश्तों ने रंग दिखलाया 

हीरों के दाम बिकने लगे,
जो थे दरअसल कंकर ही नहीं

रहने को अपना घर ही नहीं ,
रहने को अपना घर ही नहीं

नरेश ''मधुकर''



छोड़कर तेरा दर हम किधर जायेंगे

छोड़कर तेरा दर  हम किधर जायेंगे ,
हर तरफ हैं तिश्नगी  हम जिधर जायेंगे  

इस कदर तेरे हो चुके है सनम ,
हुए दूर तुझसे तो बिखर जायेंगे 

थम चूका है तूफाँ, अब शांत है जंगल
घौसलें पंछीयों  के अब  संवर जायेंगे

फिरे खूब जहां हम बेसुध होकर 
हो सका तो आज, उस शहर जायेंगे

थक चुके है कश-म-कश से ज़िन्दगी की
शाम होने को है अब हम घर जायेंगे

घर के चरागों से कैसे जलती है बस्ती 
देखा है हमने अब , हम सुधर जायेंगे 

नरेश "मधुकर"

Wednesday, November 23, 2011

मै मुफलिसी का घर हूँ

 
मै मुफलिसी का घर हूँ,जिस दिन जल जाऊंगा
रोटी की दौड़ में,सबसे आगे निकल जाऊँगा

जब ईमान दुनियां के आगे टेकेगा घुटने
न समझना जग के साँचे में ढल जाऊँगा

न दिया साथ किस्मत ने मेरा तो
किसी की आँखों में ख्वाब सा पल जाऊंगा

मेरे खलूस को जिस दिन समझ लेगी दुनियां 

खोटा सिक्का ही सही मैं उस दिन चल जाऊंगा

नरेश "मधुकर"

Saturday, November 12, 2011

पत्थरों के कब मुकद्दर हुए


आया सवाल की कौन बेहतर हुए
वादियों के चश्मे खून से तर हुए

बनाया था खुदा ने एक मिटटी से इन्सान
मजहबों में तकसीम हम यहाँ आ कर हुए

सियासत के इस बेवजह झगड़े में
कितने मुफलिस-ओ-मासूम बेघर हुए

चोट खाते रहना है  जिनकी किस्मत ''मधुकर''
उन पत्थरों के कब मुकद्दर हुए

आसमानी सोच परिंदों की फितरत है
भूखे बच्चों के कब पर हुए

जीत लेते है दुनिया अपने हे अंदाज़ में
फकीरों के कब लश्कर हुए

इल्म-ऐ-अमन पछियों से सीख इंसान
भटके दिन भर और इकट्ठे शाख पर हुए

नरेश"मधुकर" 

Friday, November 4, 2011

साथ तेरे अब काफिला हो जाएगा


खुद से लड़ने का जब हौसला हो जायेगा 
तब तूफानों का  फैसला हो जाएगा 

अब तक तो अपनों से खता खाते रहे 
जल्द ख़त्म अब सिलसिला हो जायेगा 

जा नहीं सकता इंसान दिल के खिलाफ 
जायेगा तो भीतर से  खोखला हो जाएगा 

निकल घर से ज़रा हिम्मत तो कर 
साथ तेरे अब  काफिला हो जाएगा  

 नरेश ''मधुकर''

Thursday, November 3, 2011

खोता हूँ खोकर पता हूँ ...


जब शत्रु खड़ा हो द्वार  मेरे ,
उसको भी प्रीत दिखाता हूं 

जब जब अंतर्मन घुट ता है
मै खुद को गीत सुनाता हूँ

है ज्ञात मुझे तुम मेरे नहीं
फिर भी मै ठोकर खाता  हूँ   

दीखता हु भरा मै खली हूँ 
खोता हूँ खोकर पता हूँ 

है मुझे खबर कोई साथ नहीं 
मैं अपना मन  बहलाता हूँ 

विष सा जीवन मैं जीता हूँ 
फिर क्यों मधुकर कहलाता हूँ 

नरेश ''मधुकर'' 
copyright  2011

Wednesday, November 2, 2011

तुम खड़े रहना पास मेरे ...

जब कोई न होगा साथ मेरे , खो जायेंगे अहसास मेरे
जब साँसे गहराने लगे , तुम खड़े रहना पास मेरे  

दिखता  हूँ भरा मै खाली  हूँ  ,बिन दीपक की दिवाली हूँ 
घर पूरा जगमग करता है , उजियारा न आया रास मेरे  

वक़्त घटा बन जब छाया ,तब अपनों ने रंग दिखलाया
आमों के भाव बिकने लगे ,जो बनते थे कभी ख़ास मेरे 

जो जीए ,जीए बचपन में ,आ पहुंचे जब हम पचपन में 
उम्र बड़ी और मिटते गए ,इक  इक करके आभास मेरे 

जग से किसे शिकायत है ,ये अपनों की इनायत है 
मर्यादाओं की बलि चढ़े , जीवन के सब उल्ल्हास मेरे 

सब बीत गया अब क्या कहना , अब तो बेहतर है चुप रहना 
जीवन का गीत ख़त्म हुआ , पड़ गए मद्धम सब साज़ मेरे

तुम खड़े रहना पास मेरे ...
तुम खड़े रहना पास मेरे ... 

नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

Monday, October 24, 2011

जज़्बात नामा बन गया ...

मैं हादसे लिखता गया  और फसाना बन गया
खुद से बाते ख़त्म की ,जज़्बात नामा बन गया

लगता नहीं डर मुझे ,  बदले हुए मौसम का अब  
पतझड़ों में घर मेरा , पंछीयों  का ठिकाना बन गया

इस जहाँ के शोर में , किसी ने मेरी न सुनी
दर्द जब हद से  बड़ा ,  तो तराना बन गया

लगता नहीं मुश्किल मुझे ,रूठ जाना उनका अब 
मिलना बिछड़ना प्यार में , किस्सा पुराना बन गया 

महफिलों  में  मुझ पे  उठा करती थी उंगलियां
आज आया वक़्त तो , साकी ज़माना बन गया

नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

Sunday, October 23, 2011

सदियों पुराना है ...

ख़त्म बहुत जल्द,सफ़र हो जाना है
आगे न कोई रास्ता,न कोई  ठिकाना है

जो तुमने पाया, तुम् ही को मुबारक
क़र्ज़ अपने हिस्से का,सबको चुकाना है 

देख कर वो मंज़र,रो पड़ेंगी कश्ती   
माझी हाथ पकड़ेगा,बहुत दूर जाना है 

कुछ कट चुकी है और कुछ है बाकी 
ज़िन्दगी का बस ,इतना सा फ़साना है  

कहता हूँ दर्द कागज़ से,क्या गुनाह करता हूँ 
इबादत  है मेरी,मुझे किसको सुनाना है 

मिलता है खुद ,खुद से मिलने पे 'मधुकर'
ये दस्तूर है , और सदियों पुराना है ...

नरेश'मधुकर'

Friday, October 21, 2011

मुझे मेरी हस्ती वो बताने लगे है

कभी थे जो शामिल ,मेरे कारवां में 
मुझे  मेरी हस्ती वो बताने लगे है

वफाओं के बदले ,दगा दे गया जो 
उसे  भूलने  में , ज़माने लगे है 

जिसके बाग़ हमने,फूलों से सींचे 
वही कांटे राहों में,बिछाने लगे है 

तेरे साथ हमने जो सपने बुने थे 
तन्हाई में अब वो डराने लगे है 

बनते थे जो कभी ,वक़्त के मसीहा  
देखो आज खुद ही ,ठिकाने लगे है 


 नरेश 'मधुकर'

Friday, October 14, 2011

इतनी अच्छी दुनिया अब रही ही नहीं है...

छोड़ी हमने दुनिया, जिस सनम की खातिर
उसे आज हम पे यकीन ही नहीं है

बाँट के सब कुछ, जिस दिन चले हम 
हमे दफन करने को,जमीन ही  नहीं है

प्यार को तवज्जो ,दे दौलत के आगे  
ऐसी मोहब्बत अब ,कही भी नहीं है ..

मिले दोस्त जिसको , तुमसा ऐ कातिल
उसे दुश्मनों की ,कमी ही  नहीं है  

जाने मुझे क्यों ,लगने लगा है 
इतनी अच्छी दुनिया अब रही ही नहीं है
 
नरेश 'मधुकर'

Thursday, October 13, 2011

तू पास मेरे होये


सयानो की सोहबत,जब से हमने की है 
सभी दिल के रिश्ते ,रह रह के खोए
 
दर्द ऐ दिल बताना, मुनासिब न समझा 
अन्दर ही अन्दर , घुट घुट के रोए 

अपनों ने मिलकर ,चमन मेरा लूटा
फिर भी हमने कांटे, कहीं भी न बोए 

फूलों से दामन, हुआ जब ये खाली 
अश्को के मोती हमने, ख़ुशी से पिरोए

 बस इक ख्वाइश,अन्दर  है बाकि
 बंद आँखें हो और तू पास मेरे होये ...

नरेश 'मधुकर'
 

Wednesday, October 12, 2011

वक्त गुजरा आदमी से बात करता है


सूखा दरिया जब ज़मीन से बात करता है
अपनी लहरों की रवानी याद करता है

ज़िन्दगी ढल जाये और टूटे रिश्तों का भरम
तब अँधेरा रौशनी को याद करता है 

दिन का उजयारा जब आँखों में चुभने लगे
तब चकोरा चांदनी को याद करता है

हर तरफ़ छाये अँधेरा और मन घुटने लगे 
तब'मधुकर'लेखनी को याद करता है 

होता है अहसास जब भी अपनी गलती का
वक़्त गुजरा आदमी से बात करता है 

नरेश 'मधुकर'

Sunday, October 9, 2011

अवाम की किस्मत आजमाते है

तस्वीरों में परिंदे कितने खुश नज़र आते है
क्या सच्चाई में वो भी हँसते या रुलाते है

क्या छुपा है किसी की नीयत के पीछे
हमे मतलब क्या हम तो सच दिखाते है

है गुमान  कोई आस नहीं सच के लिए
फिर भी अवाम की किस्मत आजमाते है

बच्चों की रोटी की फिक्र में जो घूमते है
वो कहाँ तन के सच बोल पाते है

ये तो है काम हम से दीवानों का 
कलम से ही सही वो हिम्मत दिखाते है 

अवाम का दर्द जहां पहुँच न पाया
हम उन कानो को हकीकत बताते है ....
 
(इस देश के पत्रकारों को समर्पित )

नरेश 'मधुकर'







ज़िन्दगी सब कुछ सिखा देती है


हालात के चलते दागा देती है
ज़िन्दगी सब कुछ सिखा देती है

ख़ामोशी के साए में बैठा हूँ
आँखें से सब कुछ बता देती है

जीया बड़ी शिद्दत से गर्दिश को 
जाने क्यूँ हर बार सज़ा देती है

शाम परिंदों के भटक जाने पर 
लौट आने की  दुआ देती है  

वक़्त गुजरा याद आता है जबजब 
भुजे शोलों को याद हवा देती है

नरेश 'मधुकर'

खुद को बदनाम कर जाऊंगा ...


उल्फत में कुछ ऐसा काम कर जाऊंगा 
अश्को को मोतियों के दाम कर जाऊंगा

देने को कुछ नहीं है मुहब्बत के सिवा
इन गीतों को तेरे नाम कर जाऊंगा

जाने कब वक़्त आ जाए मधुकर 
मैं अपने हिस्से का काम कर जाऊँगा

गैर अपनों से ज्यादा काम आये मुझको
ये बात मैं सरे आम कर जाऊंगा

समझता हैं दिल तेरे दिल की मज़बूरी 
बनके बेवफ़ा खुद को बदनाम कर जाऊंगा 

नरेश'मधुकर'


लहरों से प्यार करना ...

कब कौन दे जाए दग़ा मधुकर

बड़ा मुश्क़िल है एतबार करना 

सूखती सीपों से पूछो कैसा हैं
पड़े साहिल पे लहरों से प्यार करना

कर के वादा वो भूल गए है शायद 
कहा था जिसने मेरा इंतेज़ार करना
 
सुकूने दिल से वक्ती नशा बहुत छोटा है 
न इसको अपने सर पे सवार करना


दर्दे दिल जिसको हैं उसका दिल ही जाने
यू तो बड़ा आसां है बातें हज़ार करना ...

नरेश''मधुकर'' 

इंसानियत पे हावी इंसान ना हो ....

आवारगी का मेरी ये अंजाम ना हो
फासला हो बहुत  कोई मुकाम ना हो

तेरा हर फ़ैसला है मुझको कबूल मौला
बेवफ़ाई का मुझ पे इल्ज़ाम ना हो ...

वो बुलंदी भी भला किस काम की है
पहुँच कर जहाँ पर मेरा ईमान ना हो...

मुफलिसों को खुदा वो ज़िंदगी बख़्शे
जहाँ बाकी कोई अरमान ना हो ....

मुल्क की तकदीर कुछ यूँ लिख मौला
कभी इंसानियत पे हावी इंसान ना हो ....

नरेश'मधुकर'

















Saturday, October 8, 2011

ना मिला...


हमसफ़र कोई वफादार ना मिला
तन्हा दिल को कोई यार ना मिला

दर्द ए मोहब्बत का दोष दुनिया को क्या दूँ
देखा भीतर तो मुझ सा गुनहगार ना मिला

तबस्सुम से तेरी था उलफत का भरम कायम
तेरे बाद तुझ सा कोई दिलदार ना मिला

जिसको देखो चाहत चाँदनी की है
टूटे तारों को कोई हकदार ना मिला ..

खुशनसीब है इंसान की है कफन हासिल
मरते ख्वाबों को आज तक मज़ार ना मिला...

नरेश "मधुकर"

Friday, September 30, 2011

मेरी खातिर ना तुम खुद को सज़ा देना

तुमने दर्द दिया है तुम ही दवा देना
क़त्ल से पहले कसूर बता देना

जल जायेंगी बस्तियां घर के चरागों से

चरागों को घर के  मत तुम  हवा देना

होगा क्या हाल आखिर दिल टूटने पर
 
ज़रा सोच कर तुम किसी को  दग़ा देना

हो मेरा जो भी वो खुदा की मर्ज़ी है

मेरी खातिर ना तुम खुद को सज़ा देना

नरेश"मधुकर

लौ के चक्कर काटता पतंगा हो गए .....

हंस कही जब भीड़ से जुदा हो  गए
कौए चीख कर बोले तो खुदा हो गए

वक़्त के मसीहा थे जो बड़ी शान से
वक़्त आया तो सब गम शुदा हो गए

खाते थे जो कसमे साफगोई की
वो लोग आज खुद मैकदा हो गए

दर्द जब बड़ गए हद से आगे
बुजुर्गों की आँख का तजुर्बा हो गए

पा ना सके जब कोई मुकाम हुनर
किसी के मुकाम का तमगा हो गए

आसमां में उड़ने की थी जिनको ख्वाइश
लौ के चक्कर काटता  पतंगा हो गए ...


नरेश "मधुकर"

Thursday, September 29, 2011

कमबख्त दिल के लिए

पूछ आईने से गुनाह किए किस के लिए ,
बोल उठेगा चेहरा कमबख्त दिल के लिए

ज़माने भर का बैर मोल ले लिए मौला
फ़कत एक कमज़र्फ कातिल के लिए


डूब गया तन्हाई में , सागर भी  गहरी 
जब चल पड़ी लहरें साहिल के लिए

तब आयी याद लोगों को शाम की 
जब जल उठी शमां महफ़िल के लिए 

नहीं सोचते अंजाम आगे क्या होगा
जब निकलते है कारवाँ मंज़िल के लिए


छू सकी न कयामत तेरे शहर मे मधुकर,
वहीं अपनो ने बदले मुझसे मिल के लिए ...


नरेश मधुकर 

बादलों के बीच अपना आशियाँ होता .....


आज कुछ और ही होता अगर ना तुझ से जुदा होता ,
तू ही मस्जिद तू ही मंदिर तू ही मेरा खुदा होता ...

ज़माने भर की ततबीरों का मैं सुल्तान बन जाता,
सिर्फ़ तू ही मेरी तकदीर मे जो लिखा होता...

कितनी आसान सी लगती मुझे राह-ए-ज़िंदग़ी,
तू ही मंज़िल मेरी तू ही मेरा रास्ता होता...

दीवनों के शहर मे रहता रुतबा क़ायम
तू मेरी तिश्नगी तू मेरा हौसला होता ...

न कटते अगर मेरी ख्वाइशों के पर ,
बादलों के बीच अपना आशियाँ होता .....

नरेश "मधुकर"

सियासत को जीत का जुनून चाहिए

सियासत को जीत का जुनून चाहिए,
ह्मे कुछ पल का सुकून चाहिए..

कर बैठी अवाम ऐतबाआर उन लोगों पे,
जिन्हे बस मुफलिसों का खून चाहिए..

खाल वतन की राह मे बिछाई जिन्होने ,
उन भेड़ों के लिए ज़कात् मे ऊन चाहिए ..

जिस मुल्क की तारीख  सच से सनी है "मधुकर"
वहाँ सच के लिए आज कानून चाहिए....

नरेश "मधुकर"

Saturday, September 24, 2011

रहे कायम ये वतन हम दुआ करते है

जाने किस आजादी की बात किया करते हैं
जहाँ फूलों से भी लोग  डरा करते है

ना मज़हब है ना कोई खुदा इनका

ये साए है जो रौशनी से दग़ा करते है

बड़े अर्से से तड़पती है रूह इस मुल्क की

बात अवाम की ये कब सुना करते है

जो मरा वो भी किसी का तो बेटा था

जाने क्या सोच के ये लोग  बुरा करते है

ये खुनी जागीर सियासतदारों को मुबारक

रहे कायम ये वतन हम दुआ करते है


नरेश "मधुकर"

Tuesday, September 20, 2011

वो रहगुज़र वो कारवां आज भी होगा

वो रहगुज़र वो कारवां आज भी होगा,
वो पल वो आस्मां आज भी होगा ....

मुद्दतों बाद इस आस पर लौटा हूँ 
राह में खड़ा मेहरबाँ आज भी होगा ....

लाख दब जाए ईमान दुनिया के तले ,
कहीं इंसानीयत का निशाँ आज भी होगा ...

खोई आवाज़ आकर जिस शहर में 
वहीं मेरा हमजुबां   आज भी होगा ....

जिन  दीवारों ने वो बेदर्द मंज़र देखा है
खंडर ही सही वो मकाँ आज भी होगा ...

जिस से निभा न पाया आज तक  'मधुकर'
करेगा माफ़ मुझको वो वहाँ आज भी होगा

नरेश 'मधुकर'

Thursday, August 11, 2011

उल्फत को मेरा नाम दे दे

थक चुका हू राह-इ-तिश्नगी कुछ तो आराम दे दे
उनके तस्सवुर में एक ढलती शाम दे दे

कब तक सहू खामोश बेवफाई को सनम
सज़ा जो भी हो मुझे सरे आम दे दे

आवारगी को मेरी य़ू जाया ना कर
रास्ता मुश्किल सही कोई तो मुकाम दे दे

बहुत लम्बी हो चुकी है खामोश बातें
अब तो कोशिशो को कोई अंजाम दे दे

कही किसी और का ना हो जाये वो यारब
उसकी उल्फत को मेरा नाम दे दे

नरेश"मधुकर"

Sunday, August 7, 2011

लौट के आएगा जो मेरा है...

घनी रात के बाद सवेरा है
नम आँखों के बीच बसेरा है...

लाख छीनना चाहे रब मुझसे

वो लौट के आएगा जो मेरा है...

जीत के दुनिया कुछ न पा सका मै ,

जब से खोया साथ तेरा है

रौशनी चरागों की आँखों में चुभती है,

अब तो दोस्त अपना ये अँधेरा है ...

मर जाऊ सुकून से उस गोद में सर रख कर

इतनी सी हसरत है बस इतना ही ख्वाब मेरा है ....


नरेश "मधुकर"

Saturday, August 6, 2011

आनेवाली सेहर से बचाए ....


दुश्मनों की दुश्मनी से नहीं
खुदा दोस्तों की मेहर से बचाए

तन्हाई से क्या शिकायत मुझे
कोई भीड़ भरे शहर से बचाए 

आग का दरिया का दर नहीं मुझको 
कोई यादों की बहती नहर से बचाए

मुद्दतों से नहीं सोयी सुकून से जो आँखें
कोई उन्हें आनेवाली सेहर से बचाए 


गैरों के सितम से क्या लेना देना 
मौला बस अपनों के कहर से बचाए 

नरेश  'मधुकर' 


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Thursday, July 21, 2011

मुझ पे करना यकीन

मुझ पे करना यकीन मुझ पे करना यकीन
मुझ पे करना यकीन मुझ पे करना यकीन


दर्द हद से बड़े और दवा ना मिले ,
खोते जाएँ परिंदों के भी हौसले ......
ऐसा वक़्त कहीं ज़िन्दगी पे कभी
आ जाए तो मुझ पे करना यकीन


मुझ पे करना यकीन मुझ पे करना यकीन
मुझ पे करना यकीन मुझ पे करना यकीन



टूटना ही लिखा है अगर ख्वाब का
टूट जाये अभी जब ये मुकम्मिल नहीं...
फिर किसी मोड़ पे ग़र हम तुम मिले
तो यूँ लगे की कुछ मुश्किल नहीं ...


मुझ पे करना यकीन मुझ पे करना यकीन
मुझ पे करना यकीन मुझ पे करना यकीन



कैसे जाने की तुझको इजाज़त मैं दूँ
मेरा तेरे सिवा अब कोई भी नहीं ....
दिल के टूटने का मैं अब क्या ग़म करूँ
की ये किस्सा पुराना है नया कुछ नहीं.......


मुझ पे करना यकीन मुझ पे करना यकीन
मुझ पे करना यकीन मुझ पे करना यकीन


नरेश 'मधुकर'

copyright 2011

कभी आसमां होते थे ...


वो ज़मीन हम आसमां होते थे
तब कही दोनों जहाँ होते थे
हो न पाया वो कभी दूर मुझसे
 
फासले चाहे दरमियाँ होते थे

तन्हा खड़े खुद का पता पूछते हैं
 
जिनके पीछे कभी कारवाँ होते थे
ताने सीना खड़ी है इमारत जहां  

मुफलिसों के कभी छोटे मकाँ होते थे

स्याही से पुत गयी है बूढी दीवारें
 
जिन पे कभी उल्फत के निशाँ होते थे
खताएं अपनी  महसूस करता हूँ  
खो कर उन्हें जो हमनवां होते थे

फकीरी में मज़ा आ रहा है उनको
 
जिनके कदमो में कभी आसमां होते थे 
गुज़रे पास से बिन मिलाये नज़र 
जो कभी मेरे रहनुमां होते थे

नरेश 'मधुकर'

copyright 2011

कोई बात नहीं है ....


बातों में अब वो बात नहीं है
दिल की दिल से मुलाकात 'नहीं है

इतना तो बता दे ऐ रूठने वाले ,

क्या मनाने जैसे भी हालात नहीं है

रहेगा क़यामत तक ये सब्र कायम 

मेरे इंतज़ार से लम्बी ये रात नहीं है

परिंदों से पूछो तो जान जाओ शायद 

मस्त हवाओं की कोई ज़ात नहीं है

खामोशी का मतलब ये तो नहीं हैं 

सन्नाटों के कोई जज़्बात नहीं है
 
न दे पाओगे मधुकर इन नज़रों को धोखा  
नम आँखों से कहते हो,कोई बात नहीं है ...

नरेश मधुकर 
copyright 2011

Thursday, July 14, 2011

इतनी अच्छी किस्मत मेरी तो नहीं है ...

चाहता है वो  इज़हार ऐ मोहब्बत ,
कह दूँ  उसे मेरी  ,हिम्मत नहीं है

लगता है अच्छा यूँ साथ साथ चलना ,

कैसे मानू ये राह ऐ उल्फत नहीं है

दोस्ती का रिश्ता ही रह जाये कायम ,

खो दूँ  उसे  ऐसी चाहत नहीं है

पा लूँ इस दुनिया से सब कुछ
 'मधुकर'
इतनीअच्छी किस्मत मेरी तो नहीं है ...


नरेश "मधुकर"

क्या लिखूं ...


क्या लिखूं अपनी कलम से यह कहानी ,
बेहतर हैं सुन लेना कल जग  की जुबानी 

कहती है मुझको ये दुनिया दीवाना 
और मैं कहता हूँ  ये दुनिया दीवानी 

कौन किसका हो सका उम्रभर यहाँ पे ,
प्यार, वफ़ा, दोस्ती, सब बाते बेमानी 

साथ चलना ,प्यार करना और बिछड़ना 
हर मोहब्बत की  बस वही कहानी

बंजर  ज़मीं अब तक  न भूल पायी है 
गुज़रे मौसम कि वो  बेसुध जवानी  ...


नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

इबादत की है ,


करके तेरा रुख  इबादत की है ,
मैंने सिर्फ तुमसे मोहब्बत की है


तेरे कहर को भी हमने माना काबा , 
ऐसी शिद्दत से तिलावत की है

किया जिसने मेरे ऐतबार का खून 
उस कातिल की मैंने हिफाज़त की है

छोड़ आये सब कुछ जिसके भरोसे 
उसी ने अमानत में खयानत की है 

ग़म नहीं इस दुनिया का मधुकर मुझको  
मोड़ कर मुंह तुमने क़यामत की है ...
 
नरेश 'मधुकर'

Tuesday, July 12, 2011

धुंआ मिलता है



हर पीर नहीं मिलवाता खुदा से
खुद से मिलने पे ही खुदा मिलता है

दुनिया एक दोराहा है यहाँ पर ,
खुद के ढूंढें ही पता मिलता है

चलते है साथ साथ सभी लेकिन ,
हर शक्स को मुकाम जुदा मिलता है

ये तो अपना अपना नसीब है 'मधुकर'
किसी को मंजिल तो किसी को धुंआ मिलता है 

नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

Monday, July 11, 2011

कौन है कैसा है खुदा क्या मालूम


कौन है कैसा है खुदा क्या मालूम ,
मुझ सा या तुम सा है खुदा क्या मालूम 

कर सकता है अगर मुफलिसों का भला ,
तो बुत बना सोचता हैं क्या? क्या मालूम 

अपने ही खून से लड़ते इस इंसान को देखो ,
जाने खुद को समझता है क्या ? क्या मालूम


अंजामे वफ़ा तो हम ने देख लिया 'मधुकर',
बाकि अब देखना है क्या ? क्या मालूम  

हम तो राहे उल्फत में सब गवा बैठे है 
और किसकिस को क्या मिला ? क्या मालूम 

नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

Sunday, July 3, 2011

छीनेगा जो हक़ अवाम का दोज़ख़ मे जाएगा


झूठ को गर न जलाया जाएगा 
सच सलीबों पे चड़ाया जाएगा

बात इस कदर मेरे बच्चों को 
मेरे बाद कौन समझाएगा  

आज आवाज़ बुलंद है कल हो ना हो
बेज़ुबानों का दर्द कब तक बोल पाएगा  

मुल्क के मसीहाओं को कौन समझाए 
खुदा इन मुफलिसों के साथ नज़र आएगा 

भूख से बिलखते बच्चों से जो पूछते हैं
बोल बेटा सुल्तान किस को बनाएगा 

जितना जल्दी समझ ले ये तो बेहतर है 
छीनेगा जो हक़ अवाम का दोज़ख़ मे जाएगा 
नरेश'मधुकर'

Thursday, June 23, 2011

कब समझेगा .....


दर्दे मुफलिसी वो जाने  कब समझेगा ,
जब लुट जाएगा सब क्या तब समझेगा

कौन हुआ है किसका उम्र भर यहाँ पर ,
कड़वी सच्चाई ये दिल कब समझेगा

जज़्बात यहाँ सिर्फ दौलतमंदों के लिए हैं ,
बच्चा गरीब का ये कब समझेगा

बीता बचपन जो भूख के आँचल मे ,
चौड़ी सड़को का मतलब वो कब समझेगा

वतन के मसीहाओं को क्या लेना देना ,
दगाबाज़ी इनकी वो कब समझेगा

दिमागदारों की सोहबत में मशगूल है जो ,
दिलवालों की ज़रूरत वो कब समझेगा


नरेश 'मधुकर'


copyright 2011

Wednesday, June 22, 2011

बस मज़ार बाकि है

दुश्मनों ने किया सो किया अब  कुछ यार बाकि है 
देखने अभी दोज़ख के कई दयार बाकि है 

हो गये रुखसत अपने पराए सभी,
अब बस ये खाली दरबार बाकी है


वक्ती नशा खूब सर चढ़ के बोला 
अब तो बस हल्का ख़ुमार बाकी है 

आशियाँ खुद का जला बैठे जिसके लिए,
उस कमज़र्फ के लिए कुछ प्यार बाकी है 


आस आखरी दम तोड़ रही हैं लेकिन ,
उनके आने का अभी इंतेज़ार बाकी हैं 


बचा कुछ भी नहीं तेरे शहर में 'मधुकर'
गुज़रे वक़्त का  बस मज़ार बाकि है 


नरेश "मधुकर"

आज फिर...


मुद्दतों बाद लौटा वो ज़माना आज फिर,
मिल गया इक खोया ठिकाना आज फिर


चल पड़े संगरेज लुढ़कते लहरों के संग ,
हो गया  रवां  वो रिश्ता पुराना आज फिर...

सोचा था मुड़ कर न देखेंगे तेरा दर 'मधुकर' ,

हो गया शुरू वही से आना जाना आज फिर...

ख़ामोश खंडार दीवारों से कहते हो जैसे,
बड़ी मुश्क़िल से बसा हैं ये वीराना आज फिर...

कई पतझड़ों के बाद दे रहा है सुकून ,

सावन का यूँ करम बरसाना आज फिर....

नरेश
'मधुकर'

copyright 2011

तेरी यादों के शहर मे ...


आकर रुक गए कदम तेरी यादों के शहर मे,
बड़े बेबस खड़े है हम तेरी यादों के शहर में .

हर सड़क घूम कर तेरेओर ले आई मुझे
थे रास्ते  खतम तेरी यादों के शहर में


बड़ी बेखौफी से लुटा मिरा कारवाँ मधुकर
तमाशबीन बने हम तेरी यादों के शहर में

तू बेरुखो  बेमेहर  बनके  रहे बेवफा
कोईऔर था सनम तेरी यादों के शहर में

यह आलमो आवारगी न होती शायद 

गर होता तू हम कदम तेरी यादों के शहर में

बड़ी सोच में पड़ गयी है ज़िंदगी भी आज
कैसे ज़िंदा रहेंगे हम तेरी यादों के शहर में

ना जाती उम्र मेरी इस कदर ज़ाया
तू जो रख लेता यह भरम तेरी यादों के शहर में ...

नरेश 'मधुकर '
copyright 2011

Tuesday, June 21, 2011

डरता हू ...

खोया है इस कदर की पाने से डरता हूँ
फिर ये किस्मत आज़माने से डरता हूँ

वक़्त ने यू चुप करा दिया है मुझे
गीत छोड़ गुन गुनाने से डरता हूँ

गर्दिशों से घिरा हैं आईना दिल का 
मैं इसके टूट जाने से डरता हूँ    

जाहिराना तू कुछ भी नहीं ज़िन्दगी में मधुकर 
फिर भी तेरे रूठ जाने से डरता हूँ 

लिखी है बड़ी सच्चाई से दास्तान ऐ दोस्त
हो जाऊं न बदनाम इसअफ़साने से डरता हू
नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

सुल्तान हूँ मैं....









देख कर मंज़र बहुत हैरान हूँ मैं
कुछ परिंदो मे बची अब जान हूँ मैं

होगा कैसे अब मिलन मेरा तुम्हारा
तुम कठिन हो और बहुत आसान हूँ मैं

वक़्त का इस से भी ज़्यादा अब करम क्या
हर तरफ है भीड़ और वीरान हूँ मैं

धारा मे दुनिया की बहकर रंग बदलना
अगर है सच्चाई तो हाँ बेईमान हूँ मैं

जाने क्या वो समझ बैठे हैं मुझको
कैसे समझाऊँ महज़ इंसान हूँ मैं

प्यार की इस से भी ज़्यादा हद भला क्या
बेवफा हो जान कर अनजान हूँ मैं

मुफ़लिसी तो मुझ पे किस्मत लिख चुकी हैं
दीवानी हैं ये सल्तनत सुल्तान हूँ मैं....

नरेश मधुकर