Thursday, June 23, 2011

कब समझेगा .....


दर्दे मुफलिसी वो जाने  कब समझेगा ,
जब लुट जाएगा सब क्या तब समझेगा

कौन हुआ है किसका उम्र भर यहाँ पर ,
कड़वी सच्चाई ये दिल कब समझेगा

जज़्बात यहाँ सिर्फ दौलतमंदों के लिए हैं ,
बच्चा गरीब का ये कब समझेगा

बीता बचपन जो भूख के आँचल मे ,
चौड़ी सड़को का मतलब वो कब समझेगा

वतन के मसीहाओं को क्या लेना देना ,
दगाबाज़ी इनकी वो कब समझेगा

दिमागदारों की सोहबत में मशगूल है जो ,
दिलवालों की ज़रूरत वो कब समझेगा


नरेश 'मधुकर'


copyright 2011

Wednesday, June 22, 2011

बस मज़ार बाकि है

दुश्मनों ने किया सो किया अब  कुछ यार बाकि है 
देखने अभी दोज़ख के कई दयार बाकि है 

हो गये रुखसत अपने पराए सभी,
अब बस ये खाली दरबार बाकी है


वक्ती नशा खूब सर चढ़ के बोला 
अब तो बस हल्का ख़ुमार बाकी है 

आशियाँ खुद का जला बैठे जिसके लिए,
उस कमज़र्फ के लिए कुछ प्यार बाकी है 


आस आखरी दम तोड़ रही हैं लेकिन ,
उनके आने का अभी इंतेज़ार बाकी हैं 


बचा कुछ भी नहीं तेरे शहर में 'मधुकर'
गुज़रे वक़्त का  बस मज़ार बाकि है 


नरेश "मधुकर"

आज फिर...


मुद्दतों बाद लौटा वो ज़माना आज फिर,
मिल गया इक खोया ठिकाना आज फिर


चल पड़े संगरेज लुढ़कते लहरों के संग ,
हो गया  रवां  वो रिश्ता पुराना आज फिर...

सोचा था मुड़ कर न देखेंगे तेरा दर 'मधुकर' ,

हो गया शुरू वही से आना जाना आज फिर...

ख़ामोश खंडार दीवारों से कहते हो जैसे,
बड़ी मुश्क़िल से बसा हैं ये वीराना आज फिर...

कई पतझड़ों के बाद दे रहा है सुकून ,

सावन का यूँ करम बरसाना आज फिर....

नरेश
'मधुकर'

copyright 2011

तेरी यादों के शहर मे ...


आकर रुक गए कदम तेरी यादों के शहर मे,
बड़े बेबस खड़े है हम तेरी यादों के शहर में .

हर सड़क घूम कर तेरेओर ले आई मुझे
थे रास्ते  खतम तेरी यादों के शहर में


बड़ी बेखौफी से लुटा मिरा कारवाँ मधुकर
तमाशबीन बने हम तेरी यादों के शहर में

तू बेरुखो  बेमेहर  बनके  रहे बेवफा
कोईऔर था सनम तेरी यादों के शहर में

यह आलमो आवारगी न होती शायद 

गर होता तू हम कदम तेरी यादों के शहर में

बड़ी सोच में पड़ गयी है ज़िंदगी भी आज
कैसे ज़िंदा रहेंगे हम तेरी यादों के शहर में

ना जाती उम्र मेरी इस कदर ज़ाया
तू जो रख लेता यह भरम तेरी यादों के शहर में ...

नरेश 'मधुकर '
copyright 2011

Tuesday, June 21, 2011

डरता हू ...

खोया है इस कदर की पाने से डरता हूँ
फिर ये किस्मत आज़माने से डरता हूँ

वक़्त ने यू चुप करा दिया है मुझे
गीत छोड़ गुन गुनाने से डरता हूँ

गर्दिशों से घिरा हैं आईना दिल का 
मैं इसके टूट जाने से डरता हूँ    

जाहिराना तू कुछ भी नहीं ज़िन्दगी में मधुकर 
फिर भी तेरे रूठ जाने से डरता हूँ 

लिखी है बड़ी सच्चाई से दास्तान ऐ दोस्त
हो जाऊं न बदनाम इसअफ़साने से डरता हू
नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

सुल्तान हूँ मैं....









देख कर मंज़र बहुत हैरान हूँ मैं
कुछ परिंदो मे बची अब जान हूँ मैं

होगा कैसे अब मिलन मेरा तुम्हारा
तुम कठिन हो और बहुत आसान हूँ मैं

वक़्त का इस से भी ज़्यादा अब करम क्या
हर तरफ है भीड़ और वीरान हूँ मैं

धारा मे दुनिया की बहकर रंग बदलना
अगर है सच्चाई तो हाँ बेईमान हूँ मैं

जाने क्या वो समझ बैठे हैं मुझको
कैसे समझाऊँ महज़ इंसान हूँ मैं

प्यार की इस से भी ज़्यादा हद भला क्या
बेवफा हो जान कर अनजान हूँ मैं

मुफ़लिसी तो मुझ पे किस्मत लिख चुकी हैं
दीवानी हैं ये सल्तनत सुल्तान हूँ मैं....

नरेश मधुकर