देख कर मंज़र बहुत हैरान हूँ मैं
कुछ परिंदो मे बची अब जान हूँ मैं
होगा कैसे अब मिलन मेरा तुम्हारा
तुम कठिन हो और बहुत आसान हूँ मैं
वक़्त का इस से भी ज़्यादा अब करम क्या
हर तरफ है भीड़ और वीरान हूँ मैं
धारा मे दुनिया की बहकर रंग बदलना
अगर है सच्चाई तो हाँ बेईमान हूँ मैं
जाने क्या वो समझ बैठे हैं मुझको
कैसे समझाऊँ महज़ इंसान हूँ मैं
प्यार की इस से भी ज़्यादा हद भला क्या
बेवफा हो जान कर अनजान हूँ मैं
मुफ़लिसी तो मुझ पे किस्मत लिख चुकी हैं
दीवानी हैं ये सल्तनत सुल्तान हूँ मैं....
नरेश मधुकर
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