मिल गया इक खोया ठिकाना आज फिर
चल पड़े संगरेज लुढ़कते लहरों के संग ,
हो गया रवां वो रिश्ता पुराना आज फिर...
सोचा था मुड़ कर न देखेंगे तेरा दर 'मधुकर' ,
हो गया शुरू वही से आना जाना आज फिर...
ख़ामोश खंडार दीवारों से कहते हो जैसे,
बड़ी मुश्क़िल से बसा हैं ये वीराना आज फिर...
कई पतझड़ों के बाद दे रहा है सुकून ,
नरेश 'मधुकर'
copyright 2011
चल पड़े संगरेज लुढ़कते लहरों के संग ,
हो गया रवां वो रिश्ता पुराना आज फिर...
सोचा था मुड़ कर न देखेंगे तेरा दर 'मधुकर' ,
हो गया शुरू वही से आना जाना आज फिर...
ख़ामोश खंडार दीवारों से कहते हो जैसे,
बड़ी मुश्क़िल से बसा हैं ये वीराना आज फिर...
कई पतझड़ों के बाद दे रहा है सुकून ,
सावन का यूँ करम बरसाना आज फिर....
नरेश 'मधुकर'
copyright 2011
No comments:
Post a Comment