Thursday, July 21, 2011

कभी आसमां होते थे ...


वो ज़मीन हम आसमां होते थे
तब कही दोनों जहाँ होते थे
हो न पाया वो कभी दूर मुझसे
 
फासले चाहे दरमियाँ होते थे

तन्हा खड़े खुद का पता पूछते हैं
 
जिनके पीछे कभी कारवाँ होते थे
ताने सीना खड़ी है इमारत जहां  

मुफलिसों के कभी छोटे मकाँ होते थे

स्याही से पुत गयी है बूढी दीवारें
 
जिन पे कभी उल्फत के निशाँ होते थे
खताएं अपनी  महसूस करता हूँ  
खो कर उन्हें जो हमनवां होते थे

फकीरी में मज़ा आ रहा है उनको
 
जिनके कदमो में कभी आसमां होते थे 
गुज़रे पास से बिन मिलाये नज़र 
जो कभी मेरे रहनुमां होते थे

नरेश 'मधुकर'

copyright 2011

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