Friday, September 30, 2011

मेरी खातिर ना तुम खुद को सज़ा देना

तुमने दर्द दिया है तुम ही दवा देना
क़त्ल से पहले कसूर बता देना

जल जायेंगी बस्तियां घर के चरागों से

चरागों को घर के  मत तुम  हवा देना

होगा क्या हाल आखिर दिल टूटने पर
 
ज़रा सोच कर तुम किसी को  दग़ा देना

हो मेरा जो भी वो खुदा की मर्ज़ी है

मेरी खातिर ना तुम खुद को सज़ा देना

नरेश"मधुकर

लौ के चक्कर काटता पतंगा हो गए .....

हंस कही जब भीड़ से जुदा हो  गए
कौए चीख कर बोले तो खुदा हो गए

वक़्त के मसीहा थे जो बड़ी शान से
वक़्त आया तो सब गम शुदा हो गए

खाते थे जो कसमे साफगोई की
वो लोग आज खुद मैकदा हो गए

दर्द जब बड़ गए हद से आगे
बुजुर्गों की आँख का तजुर्बा हो गए

पा ना सके जब कोई मुकाम हुनर
किसी के मुकाम का तमगा हो गए

आसमां में उड़ने की थी जिनको ख्वाइश
लौ के चक्कर काटता  पतंगा हो गए ...


नरेश "मधुकर"

Thursday, September 29, 2011

कमबख्त दिल के लिए

पूछ आईने से गुनाह किए किस के लिए ,
बोल उठेगा चेहरा कमबख्त दिल के लिए

ज़माने भर का बैर मोल ले लिए मौला
फ़कत एक कमज़र्फ कातिल के लिए


डूब गया तन्हाई में , सागर भी  गहरी 
जब चल पड़ी लहरें साहिल के लिए

तब आयी याद लोगों को शाम की 
जब जल उठी शमां महफ़िल के लिए 

नहीं सोचते अंजाम आगे क्या होगा
जब निकलते है कारवाँ मंज़िल के लिए


छू सकी न कयामत तेरे शहर मे मधुकर,
वहीं अपनो ने बदले मुझसे मिल के लिए ...


नरेश मधुकर 

बादलों के बीच अपना आशियाँ होता .....


आज कुछ और ही होता अगर ना तुझ से जुदा होता ,
तू ही मस्जिद तू ही मंदिर तू ही मेरा खुदा होता ...

ज़माने भर की ततबीरों का मैं सुल्तान बन जाता,
सिर्फ़ तू ही मेरी तकदीर मे जो लिखा होता...

कितनी आसान सी लगती मुझे राह-ए-ज़िंदग़ी,
तू ही मंज़िल मेरी तू ही मेरा रास्ता होता...

दीवनों के शहर मे रहता रुतबा क़ायम
तू मेरी तिश्नगी तू मेरा हौसला होता ...

न कटते अगर मेरी ख्वाइशों के पर ,
बादलों के बीच अपना आशियाँ होता .....

नरेश "मधुकर"

सियासत को जीत का जुनून चाहिए

सियासत को जीत का जुनून चाहिए,
ह्मे कुछ पल का सुकून चाहिए..

कर बैठी अवाम ऐतबाआर उन लोगों पे,
जिन्हे बस मुफलिसों का खून चाहिए..

खाल वतन की राह मे बिछाई जिन्होने ,
उन भेड़ों के लिए ज़कात् मे ऊन चाहिए ..

जिस मुल्क की तारीख  सच से सनी है "मधुकर"
वहाँ सच के लिए आज कानून चाहिए....

नरेश "मधुकर"

Saturday, September 24, 2011

रहे कायम ये वतन हम दुआ करते है

जाने किस आजादी की बात किया करते हैं
जहाँ फूलों से भी लोग  डरा करते है

ना मज़हब है ना कोई खुदा इनका

ये साए है जो रौशनी से दग़ा करते है

बड़े अर्से से तड़पती है रूह इस मुल्क की

बात अवाम की ये कब सुना करते है

जो मरा वो भी किसी का तो बेटा था

जाने क्या सोच के ये लोग  बुरा करते है

ये खुनी जागीर सियासतदारों को मुबारक

रहे कायम ये वतन हम दुआ करते है


नरेश "मधुकर"

Tuesday, September 20, 2011

वो रहगुज़र वो कारवां आज भी होगा

वो रहगुज़र वो कारवां आज भी होगा,
वो पल वो आस्मां आज भी होगा ....

मुद्दतों बाद इस आस पर लौटा हूँ 
राह में खड़ा मेहरबाँ आज भी होगा ....

लाख दब जाए ईमान दुनिया के तले ,
कहीं इंसानीयत का निशाँ आज भी होगा ...

खोई आवाज़ आकर जिस शहर में 
वहीं मेरा हमजुबां   आज भी होगा ....

जिन  दीवारों ने वो बेदर्द मंज़र देखा है
खंडर ही सही वो मकाँ आज भी होगा ...

जिस से निभा न पाया आज तक  'मधुकर'
करेगा माफ़ मुझको वो वहाँ आज भी होगा

नरेश 'मधुकर'