वो रहगुज़र वो कारवां आज भी होगा,
मुद्दतों बाद इस आस पर लौटा हूँ
वो पल वो आस्मां आज भी होगा ....
मुद्दतों बाद इस आस पर लौटा हूँ
राह में खड़ा मेहरबाँ आज भी होगा ....
लाख दब जाए ईमान दुनिया के तले ,
कहीं इंसानीयत का निशाँ आज भी होगा ...
खोई आवाज़ आकर जिस शहर में
वहीं मेरा हमजुबां आज भी होगा ....
जिन दीवारों ने वो बेदर्द मंज़र देखा है
खंडर ही सही वो मकाँ आज भी होगा ...
जिस से निभा न पाया आज तक 'मधुकर'
करेगा माफ़ मुझको वो वहाँ आज भी होगा
नरेश 'मधुकर'
No comments:
Post a Comment