Monday, October 24, 2011

जज़्बात नामा बन गया ...

मैं हादसे लिखता गया  और फसाना बन गया
खुद से बाते ख़त्म की ,जज़्बात नामा बन गया

लगता नहीं डर मुझे ,  बदले हुए मौसम का अब  
पतझड़ों में घर मेरा , पंछीयों  का ठिकाना बन गया

इस जहाँ के शोर में , किसी ने मेरी न सुनी
दर्द जब हद से  बड़ा ,  तो तराना बन गया

लगता नहीं मुश्किल मुझे ,रूठ जाना उनका अब 
मिलना बिछड़ना प्यार में , किस्सा पुराना बन गया 

महफिलों  में  मुझ पे  उठा करती थी उंगलियां
आज आया वक़्त तो , साकी ज़माना बन गया

नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

Sunday, October 23, 2011

सदियों पुराना है ...

ख़त्म बहुत जल्द,सफ़र हो जाना है
आगे न कोई रास्ता,न कोई  ठिकाना है

जो तुमने पाया, तुम् ही को मुबारक
क़र्ज़ अपने हिस्से का,सबको चुकाना है 

देख कर वो मंज़र,रो पड़ेंगी कश्ती   
माझी हाथ पकड़ेगा,बहुत दूर जाना है 

कुछ कट चुकी है और कुछ है बाकी 
ज़िन्दगी का बस ,इतना सा फ़साना है  

कहता हूँ दर्द कागज़ से,क्या गुनाह करता हूँ 
इबादत  है मेरी,मुझे किसको सुनाना है 

मिलता है खुद ,खुद से मिलने पे 'मधुकर'
ये दस्तूर है , और सदियों पुराना है ...

नरेश'मधुकर'

Friday, October 21, 2011

मुझे मेरी हस्ती वो बताने लगे है

कभी थे जो शामिल ,मेरे कारवां में 
मुझे  मेरी हस्ती वो बताने लगे है

वफाओं के बदले ,दगा दे गया जो 
उसे  भूलने  में , ज़माने लगे है 

जिसके बाग़ हमने,फूलों से सींचे 
वही कांटे राहों में,बिछाने लगे है 

तेरे साथ हमने जो सपने बुने थे 
तन्हाई में अब वो डराने लगे है 

बनते थे जो कभी ,वक़्त के मसीहा  
देखो आज खुद ही ,ठिकाने लगे है 


 नरेश 'मधुकर'

Friday, October 14, 2011

इतनी अच्छी दुनिया अब रही ही नहीं है...

छोड़ी हमने दुनिया, जिस सनम की खातिर
उसे आज हम पे यकीन ही नहीं है

बाँट के सब कुछ, जिस दिन चले हम 
हमे दफन करने को,जमीन ही  नहीं है

प्यार को तवज्जो ,दे दौलत के आगे  
ऐसी मोहब्बत अब ,कही भी नहीं है ..

मिले दोस्त जिसको , तुमसा ऐ कातिल
उसे दुश्मनों की ,कमी ही  नहीं है  

जाने मुझे क्यों ,लगने लगा है 
इतनी अच्छी दुनिया अब रही ही नहीं है
 
नरेश 'मधुकर'

Thursday, October 13, 2011

तू पास मेरे होये


सयानो की सोहबत,जब से हमने की है 
सभी दिल के रिश्ते ,रह रह के खोए
 
दर्द ऐ दिल बताना, मुनासिब न समझा 
अन्दर ही अन्दर , घुट घुट के रोए 

अपनों ने मिलकर ,चमन मेरा लूटा
फिर भी हमने कांटे, कहीं भी न बोए 

फूलों से दामन, हुआ जब ये खाली 
अश्को के मोती हमने, ख़ुशी से पिरोए

 बस इक ख्वाइश,अन्दर  है बाकि
 बंद आँखें हो और तू पास मेरे होये ...

नरेश 'मधुकर'
 

Wednesday, October 12, 2011

वक्त गुजरा आदमी से बात करता है


सूखा दरिया जब ज़मीन से बात करता है
अपनी लहरों की रवानी याद करता है

ज़िन्दगी ढल जाये और टूटे रिश्तों का भरम
तब अँधेरा रौशनी को याद करता है 

दिन का उजयारा जब आँखों में चुभने लगे
तब चकोरा चांदनी को याद करता है

हर तरफ़ छाये अँधेरा और मन घुटने लगे 
तब'मधुकर'लेखनी को याद करता है 

होता है अहसास जब भी अपनी गलती का
वक़्त गुजरा आदमी से बात करता है 

नरेश 'मधुकर'

Sunday, October 9, 2011

अवाम की किस्मत आजमाते है

तस्वीरों में परिंदे कितने खुश नज़र आते है
क्या सच्चाई में वो भी हँसते या रुलाते है

क्या छुपा है किसी की नीयत के पीछे
हमे मतलब क्या हम तो सच दिखाते है

है गुमान  कोई आस नहीं सच के लिए
फिर भी अवाम की किस्मत आजमाते है

बच्चों की रोटी की फिक्र में जो घूमते है
वो कहाँ तन के सच बोल पाते है

ये तो है काम हम से दीवानों का 
कलम से ही सही वो हिम्मत दिखाते है 

अवाम का दर्द जहां पहुँच न पाया
हम उन कानो को हकीकत बताते है ....
 
(इस देश के पत्रकारों को समर्पित )

नरेश 'मधुकर'







ज़िन्दगी सब कुछ सिखा देती है


हालात के चलते दागा देती है
ज़िन्दगी सब कुछ सिखा देती है

ख़ामोशी के साए में बैठा हूँ
आँखें से सब कुछ बता देती है

जीया बड़ी शिद्दत से गर्दिश को 
जाने क्यूँ हर बार सज़ा देती है

शाम परिंदों के भटक जाने पर 
लौट आने की  दुआ देती है  

वक़्त गुजरा याद आता है जबजब 
भुजे शोलों को याद हवा देती है

नरेश 'मधुकर'

खुद को बदनाम कर जाऊंगा ...


उल्फत में कुछ ऐसा काम कर जाऊंगा 
अश्को को मोतियों के दाम कर जाऊंगा

देने को कुछ नहीं है मुहब्बत के सिवा
इन गीतों को तेरे नाम कर जाऊंगा

जाने कब वक़्त आ जाए मधुकर 
मैं अपने हिस्से का काम कर जाऊँगा

गैर अपनों से ज्यादा काम आये मुझको
ये बात मैं सरे आम कर जाऊंगा

समझता हैं दिल तेरे दिल की मज़बूरी 
बनके बेवफ़ा खुद को बदनाम कर जाऊंगा 

नरेश'मधुकर'


लहरों से प्यार करना ...

कब कौन दे जाए दग़ा मधुकर

बड़ा मुश्क़िल है एतबार करना 

सूखती सीपों से पूछो कैसा हैं
पड़े साहिल पे लहरों से प्यार करना

कर के वादा वो भूल गए है शायद 
कहा था जिसने मेरा इंतेज़ार करना
 
सुकूने दिल से वक्ती नशा बहुत छोटा है 
न इसको अपने सर पे सवार करना


दर्दे दिल जिसको हैं उसका दिल ही जाने
यू तो बड़ा आसां है बातें हज़ार करना ...

नरेश''मधुकर'' 

इंसानियत पे हावी इंसान ना हो ....

आवारगी का मेरी ये अंजाम ना हो
फासला हो बहुत  कोई मुकाम ना हो

तेरा हर फ़ैसला है मुझको कबूल मौला
बेवफ़ाई का मुझ पे इल्ज़ाम ना हो ...

वो बुलंदी भी भला किस काम की है
पहुँच कर जहाँ पर मेरा ईमान ना हो...

मुफलिसों को खुदा वो ज़िंदगी बख़्शे
जहाँ बाकी कोई अरमान ना हो ....

मुल्क की तकदीर कुछ यूँ लिख मौला
कभी इंसानियत पे हावी इंसान ना हो ....

नरेश'मधुकर'

















Saturday, October 8, 2011

ना मिला...


हमसफ़र कोई वफादार ना मिला
तन्हा दिल को कोई यार ना मिला

दर्द ए मोहब्बत का दोष दुनिया को क्या दूँ
देखा भीतर तो मुझ सा गुनहगार ना मिला

तबस्सुम से तेरी था उलफत का भरम कायम
तेरे बाद तुझ सा कोई दिलदार ना मिला

जिसको देखो चाहत चाँदनी की है
टूटे तारों को कोई हकदार ना मिला ..

खुशनसीब है इंसान की है कफन हासिल
मरते ख्वाबों को आज तक मज़ार ना मिला...

नरेश "मधुकर"