अपनी लहरों की रवानी याद करता है
ज़िन्दगी ढल जाये और टूटे रिश्तों का भरम
तब अँधेरा रौशनी को याद करता है
दिन का उजयारा जब आँखों में चुभने लगे
तब चकोरा चांदनी को याद करता है
हर तरफ़ छाये अँधेरा और मन घुटने लगे
हर तरफ़ छाये अँधेरा और मन घुटने लगे
तब'मधुकर'लेखनी को याद करता है
होता है अहसास जब भी अपनी गलती का
वक़्त गुजरा आदमी से बात करता है
नरेश 'मधुकर'
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