मुझे मेरी हस्ती वो बताने लगे है
वफाओं के बदले ,दगा दे गया जो
उसे भूलने में , ज़माने लगे है
जिसके बाग़ हमने,फूलों से सींचे
वही कांटे राहों में,बिछाने लगे है
तेरे साथ हमने जो सपने बुने थे
तन्हाई में अब वो डराने लगे है
बनते थे जो कभी ,वक़्त के मसीहा
देखो आज खुद ही ,ठिकाने लगे है
नरेश 'मधुकर'
No comments:
Post a Comment