Monday, October 24, 2011

जज़्बात नामा बन गया ...

मैं हादसे लिखता गया  और फसाना बन गया
खुद से बाते ख़त्म की ,जज़्बात नामा बन गया

लगता नहीं डर मुझे ,  बदले हुए मौसम का अब  
पतझड़ों में घर मेरा , पंछीयों  का ठिकाना बन गया

इस जहाँ के शोर में , किसी ने मेरी न सुनी
दर्द जब हद से  बड़ा ,  तो तराना बन गया

लगता नहीं मुश्किल मुझे ,रूठ जाना उनका अब 
मिलना बिछड़ना प्यार में , किस्सा पुराना बन गया 

महफिलों  में  मुझ पे  उठा करती थी उंगलियां
आज आया वक़्त तो , साकी ज़माना बन गया

नरेश 'मधुकर'
copyright 2011

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