तस्वीरों में परिंदे कितने खुश नज़र आते है
क्या सच्चाई में वो भी हँसते या रुलाते है
क्या छुपा है किसी की नीयत के पीछे
हमे मतलब क्या हम तो सच दिखाते है
है गुमान कोई आस नहीं सच के लिए
फिर भी अवाम की किस्मत आजमाते है
बच्चों की रोटी की फिक्र में जो घूमते है
वो कहाँ तन के सच बोल पाते है
ये तो है काम हम से दीवानों का
कलम से ही सही वो हिम्मत दिखाते है
कलम से ही सही वो हिम्मत दिखाते है
अवाम का दर्द जहां पहुँच न पाया
हम उन कानो को हकीकत बताते है ....
(इस देश के पत्रकारों को समर्पित )
नरेश 'मधुकर'
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