Thursday, November 24, 2011

रहने को अपना घर ही नहीं ...


कहने को सारा जहाँ मेरा ,
रहने को अपना घर ही  नहीं  ...

जीने को चाहिए प्यार बहुत,
बस बेजुबान पत्थर ही नहीं  ....

किस किस को व्यथा मैं बतलाऊ
किस किस को घाव मैं दिखलाऊ

आकाश खुला है बुला रहा,
उड़ने को मेरे पर ही नहीं ...

जब जब बुरा वक़्त घिर आया
तब रिश्तों ने रंग दिखलाया 

हीरों के दाम बिकने लगे,
जो थे दरअसल कंकर ही नहीं

रहने को अपना घर ही नहीं ,
रहने को अपना घर ही नहीं

नरेश ''मधुकर''



छोड़कर तेरा दर हम किधर जायेंगे

छोड़कर तेरा दर  हम किधर जायेंगे ,
हर तरफ हैं तिश्नगी  हम जिधर जायेंगे  

इस कदर तेरे हो चुके है सनम ,
हुए दूर तुझसे तो बिखर जायेंगे 

थम चूका है तूफाँ, अब शांत है जंगल
घौसलें पंछीयों  के अब  संवर जायेंगे

फिरे खूब जहां हम बेसुध होकर 
हो सका तो आज, उस शहर जायेंगे

थक चुके है कश-म-कश से ज़िन्दगी की
शाम होने को है अब हम घर जायेंगे

घर के चरागों से कैसे जलती है बस्ती 
देखा है हमने अब , हम सुधर जायेंगे 

नरेश "मधुकर"

Wednesday, November 23, 2011

मै मुफलिसी का घर हूँ

 
मै मुफलिसी का घर हूँ,जिस दिन जल जाऊंगा
रोटी की दौड़ में,सबसे आगे निकल जाऊँगा

जब ईमान दुनियां के आगे टेकेगा घुटने
न समझना जग के साँचे में ढल जाऊँगा

न दिया साथ किस्मत ने मेरा तो
किसी की आँखों में ख्वाब सा पल जाऊंगा

मेरे खलूस को जिस दिन समझ लेगी दुनियां 

खोटा सिक्का ही सही मैं उस दिन चल जाऊंगा

नरेश "मधुकर"

Saturday, November 12, 2011

पत्थरों के कब मुकद्दर हुए


आया सवाल की कौन बेहतर हुए
वादियों के चश्मे खून से तर हुए

बनाया था खुदा ने एक मिटटी से इन्सान
मजहबों में तकसीम हम यहाँ आ कर हुए

सियासत के इस बेवजह झगड़े में
कितने मुफलिस-ओ-मासूम बेघर हुए

चोट खाते रहना है  जिनकी किस्मत ''मधुकर''
उन पत्थरों के कब मुकद्दर हुए

आसमानी सोच परिंदों की फितरत है
भूखे बच्चों के कब पर हुए

जीत लेते है दुनिया अपने हे अंदाज़ में
फकीरों के कब लश्कर हुए

इल्म-ऐ-अमन पछियों से सीख इंसान
भटके दिन भर और इकट्ठे शाख पर हुए

नरेश"मधुकर" 

Friday, November 4, 2011

साथ तेरे अब काफिला हो जाएगा


खुद से लड़ने का जब हौसला हो जायेगा 
तब तूफानों का  फैसला हो जाएगा 

अब तक तो अपनों से खता खाते रहे 
जल्द ख़त्म अब सिलसिला हो जायेगा 

जा नहीं सकता इंसान दिल के खिलाफ 
जायेगा तो भीतर से  खोखला हो जाएगा 

निकल घर से ज़रा हिम्मत तो कर 
साथ तेरे अब  काफिला हो जाएगा  

 नरेश ''मधुकर''

Thursday, November 3, 2011

खोता हूँ खोकर पता हूँ ...


जब शत्रु खड़ा हो द्वार  मेरे ,
उसको भी प्रीत दिखाता हूं 

जब जब अंतर्मन घुट ता है
मै खुद को गीत सुनाता हूँ

है ज्ञात मुझे तुम मेरे नहीं
फिर भी मै ठोकर खाता  हूँ   

दीखता हु भरा मै खली हूँ 
खोता हूँ खोकर पता हूँ 

है मुझे खबर कोई साथ नहीं 
मैं अपना मन  बहलाता हूँ 

विष सा जीवन मैं जीता हूँ 
फिर क्यों मधुकर कहलाता हूँ 

नरेश ''मधुकर'' 
copyright  2011

Wednesday, November 2, 2011

तुम खड़े रहना पास मेरे ...

जब कोई न होगा साथ मेरे , खो जायेंगे अहसास मेरे
जब साँसे गहराने लगे , तुम खड़े रहना पास मेरे  

दिखता  हूँ भरा मै खाली  हूँ  ,बिन दीपक की दिवाली हूँ 
घर पूरा जगमग करता है , उजियारा न आया रास मेरे  

वक़्त घटा बन जब छाया ,तब अपनों ने रंग दिखलाया
आमों के भाव बिकने लगे ,जो बनते थे कभी ख़ास मेरे 

जो जीए ,जीए बचपन में ,आ पहुंचे जब हम पचपन में 
उम्र बड़ी और मिटते गए ,इक  इक करके आभास मेरे 

जग से किसे शिकायत है ,ये अपनों की इनायत है 
मर्यादाओं की बलि चढ़े , जीवन के सब उल्ल्हास मेरे 

सब बीत गया अब क्या कहना , अब तो बेहतर है चुप रहना 
जीवन का गीत ख़त्म हुआ , पड़ गए मद्धम सब साज़ मेरे

तुम खड़े रहना पास मेरे ...
तुम खड़े रहना पास मेरे ... 

नरेश 'मधुकर'
copyright 2011