जब साँसे गहराने लगे , तुम खड़े रहना पास मेरे
दिखता हूँ भरा मै खाली हूँ ,बिन दीपक की दिवाली हूँ
घर पूरा जगमग करता है , उजियारा न आया रास मेरे
वक़्त घटा बन जब छाया ,तब अपनों ने रंग दिखलाया
आमों के भाव बिकने लगे ,जो बनते थे कभी ख़ास मेरे
जो जीए ,जीए बचपन में ,आ पहुंचे जब हम पचपन में
उम्र बड़ी और मिटते गए ,इक इक करके आभास मेरे
जो जीए ,जीए बचपन में ,आ पहुंचे जब हम पचपन में
उम्र बड़ी और मिटते गए ,इक इक करके आभास मेरे
जग से किसे शिकायत है ,ये अपनों की इनायत है
मर्यादाओं की बलि चढ़े , जीवन के सब उल्ल्हास मेरे
सब बीत गया अब क्या कहना , अब तो बेहतर है चुप रहना
जीवन का गीत ख़त्म हुआ , पड़ गए मद्धम सब साज़ मेरे
तुम खड़े रहना पास मेरे ...
तुम खड़े रहना पास मेरे ...
नरेश 'मधुकर'
copyright 2011
मर्यादाओं की बलि चढ़े , जीवन के सब उल्ल्हास मेरे
सब बीत गया अब क्या कहना , अब तो बेहतर है चुप रहना
जीवन का गीत ख़त्म हुआ , पड़ गए मद्धम सब साज़ मेरे
तुम खड़े रहना पास मेरे ...
तुम खड़े रहना पास मेरे ...
नरेश 'मधुकर'
copyright 2011
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