उसको भी प्रीत दिखाता हूं
जब जब अंतर्मन घुट ता है
मै खुद को गीत सुनाता हूँ
है ज्ञात मुझे तुम मेरे नहीं
फिर भी मै ठोकर खाता हूँ
दीखता हु भरा मै खली हूँ
खोता हूँ खोकर पता हूँ
है मुझे खबर कोई साथ नहीं
मैं अपना मन बहलाता हूँ
विष सा जीवन मैं जीता हूँ
फिर क्यों मधुकर कहलाता हूँ
नरेश ''मधुकर''
copyright 2011
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