आया सवाल की कौन बेहतर हुए
वादियों के चश्मे खून से तर हुए
बनाया था खुदा ने एक मिटटी से इन्सान
मजहबों में तकसीम हम यहाँ आ कर हुए
सियासत के इस बेवजह झगड़े में
कितने मुफलिस-ओ-मासूम बेघर हुए
चोट खाते रहना है जिनकी किस्मत ''मधुकर''
उन पत्थरों के कब मुकद्दर हुए
आसमानी सोच परिंदों की फितरत है
भूखे बच्चों के कब पर हुए
जीत लेते है दुनिया अपने हे अंदाज़ में
फकीरों के कब लश्कर हुए
इल्म-ऐ-अमन पछियों से सीख इंसान
भटके दिन भर और इकट्ठे शाख पर हुए
नरेश"मधुकर"
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