Saturday, November 12, 2011

पत्थरों के कब मुकद्दर हुए


आया सवाल की कौन बेहतर हुए
वादियों के चश्मे खून से तर हुए

बनाया था खुदा ने एक मिटटी से इन्सान
मजहबों में तकसीम हम यहाँ आ कर हुए

सियासत के इस बेवजह झगड़े में
कितने मुफलिस-ओ-मासूम बेघर हुए

चोट खाते रहना है  जिनकी किस्मत ''मधुकर''
उन पत्थरों के कब मुकद्दर हुए

आसमानी सोच परिंदों की फितरत है
भूखे बच्चों के कब पर हुए

जीत लेते है दुनिया अपने हे अंदाज़ में
फकीरों के कब लश्कर हुए

इल्म-ऐ-अमन पछियों से सीख इंसान
भटके दिन भर और इकट्ठे शाख पर हुए

नरेश"मधुकर" 

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