Thursday, November 24, 2011

छोड़कर तेरा दर हम किधर जायेंगे

छोड़कर तेरा दर  हम किधर जायेंगे ,
हर तरफ हैं तिश्नगी  हम जिधर जायेंगे  

इस कदर तेरे हो चुके है सनम ,
हुए दूर तुझसे तो बिखर जायेंगे 

थम चूका है तूफाँ, अब शांत है जंगल
घौसलें पंछीयों  के अब  संवर जायेंगे

फिरे खूब जहां हम बेसुध होकर 
हो सका तो आज, उस शहर जायेंगे

थक चुके है कश-म-कश से ज़िन्दगी की
शाम होने को है अब हम घर जायेंगे

घर के चरागों से कैसे जलती है बस्ती 
देखा है हमने अब , हम सुधर जायेंगे 

नरेश "मधुकर"

1 comment:

  1. आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
    इतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
    आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद्
    दिनेश पारीक
    http://dineshpareek19.blogspot.com/
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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