छोड़कर तेरा दर हम किधर जायेंगे ,
हर तरफ हैं तिश्नगी हम जिधर जायेंगे
इस कदर तेरे हो चुके है सनम ,
हुए दूर तुझसे तो बिखर जायेंगे
थम चूका है तूफाँ, अब शांत है जंगल
घौसलें पंछीयों के अब संवर जायेंगे
फिरे खूब जहां हम बेसुध होकर
हो सका तो आज, उस शहर जायेंगे
थक चुके है कश-म-कश से ज़िन्दगी की
शाम होने को है अब हम घर जायेंगे
घर के चरागों से कैसे जलती है बस्ती
देखा है हमने अब , हम सुधर जायेंगे
नरेश "मधुकर"
हर तरफ हैं तिश्नगी हम जिधर जायेंगे
इस कदर तेरे हो चुके है सनम ,
हुए दूर तुझसे तो बिखर जायेंगे
थम चूका है तूफाँ, अब शांत है जंगल
घौसलें पंछीयों के अब संवर जायेंगे
फिरे खूब जहां हम बेसुध होकर
हो सका तो आज, उस शहर जायेंगे
थक चुके है कश-म-कश से ज़िन्दगी की
शाम होने को है अब हम घर जायेंगे
घर के चरागों से कैसे जलती है बस्ती
देखा है हमने अब , हम सुधर जायेंगे
नरेश "मधुकर"
आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
ReplyDeleteइतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/