Monday, January 23, 2012

सलीब पराये मुझे उठाने थे बहुत ...


कहने का सलीका न आया हमको  
वर्ना कहने को पास फ़साने थे बहुत

हाले दिल जब भी हमने कहना चाहा
न सुनने के उनके पास बहाने थे बहुत

न मिला वक़्त मुफलिसी में मोहब्बत के लिए
क़र्ज़ दुनिया के शायद चुकाने थे बहुत

बड़ा बेहिजाब हो हाथ छोड़ गया वो मेरा
शायद उसके पास ठिकाने थे बहुत

दर्दे दिल के लिए न मिली फुर्सत 'मधुकर'
सलीब पराये मुझे उठाने थे बहुत 

नरेश'मधुकर' 

सपने ...

सपने ...

ढेर सरे सपने

इंसान इन सपनो के पंछियों को 
सदियों अपनी पलकों पे पालता  है
इन्हें दाना डालता है
इनके लौटने का इंतज़ार करता है
सोचता है
कभी तो ये मुक्क़मिल होंगे
और वो जी भर के जीएगा
इनके साथ...
और भूल जायेगा
सारी तकलीफ
सारे गम
किस्मत कुछ और ही करती है
कुछ सपने मर जाते है
कुछ खो जाते है
कुछ धीमे पड़ जाते है
कुछ दूर निकल जाते है
फिर भी इंसान
उन्हें भूल नहीं पाता
उनका बदहवास पीछा करता है
उन्हें पकड़ने की कोशिश करता है
और चाहता है वो उनके साथ रहे
और उनके लिए सब कुछ करता है
सब कुछ ...
जो कभी उसने सोचा ही न था
एक दिन उसे लगता है शाम हो गयी है
उसकी उम्र उसका साथ नहीं दे रही
और वो इन पंछियों के साथ
बहुत दूर निकल आया है
इतनी दूर की वो अब
वहां से वापस नहीं जा सकता
न जाना चाहता है
साँसे धीमी पड़ रही है
आँखें गहरा रही है लेकिनफिर भी वो 
उन सपनो को जिंदा रखने की कोशिश में  हैं 
की काश ...
पूरे हो जाये
काश पूरे हो जाते 
वो सपने ...

Monday, January 16, 2012

बाकि उल्फत के निशाँ क्यूँ है ...


मौला जाने ये दिल परेशाँ क्यूँ  है 
बिन उसके ज़िन्दगी  वीराँ क्यूँ हैं

छोड़ जाता है सदा हमसफ़र तन्हा
हर बार मेरी वही दास्ताँ क्यूँ है   

गर करती हो मुझसे इतनी नफरत
नम आँखों में बेबस बयाँ क्यूँ है

बे हिजाब भूल गया वो सब कुछ  
दर मेरा महफिले मह्कशां क्यूँ है

पूछता है जब कोई आवारगी का सबब   
लगता मैकदा कूचा-ऐ-दिल्बराँ क्यूँ है

मिट चुका हूँ ज़िन्दगी से उसकी 'मधुकर'
फिर बाकि उल्फत के निशाँ क्यूँ है

नरेश ''मधुकर''

Sunday, January 15, 2012

रात...

रात
कितनी घनी
कितनी अकेली
गहरे काले आस्मां का आँचल ओड़े हुए
जैसे किसी का इंतज़ार करती हुई
सदियों से ...
जागती हुई
सोचती हुई
कभी कोई तो आएगा
और बाँट लेगा
सारा दर्द
सारी तन्हाई
सारे ग़म
लेकिन ...
कोई नहीं आता
भोर आते आते उसकी
हिम्मत जैसे टूट जाती है
और वो सायों की आहट सुन कर
डर जाती है

साए...
वो साए
जो भोर को अपने संग लाये है
वो भोर जो उसे नापसंद है
लेकिन फिर भी
उसके मसीहा के न आने से
वो उस भोर से समझौता कर लेती है
और समा जाती है
उस धीमे उजाले में
जो कभी उसका बैरी होता था

काश कोई समझ पाता
उस अकेली रात का दर्द ...

नरेश''मधुकर''

Wednesday, January 11, 2012

जज्बातों के रंग

प्रिय मित्रो ,

              ''जज्बात्नामा '' तीन रंगों में ढाला गया हैं जिस में जज्बातों के अलग अलग रंग है और वो रंग है ग़ज़ल , कविता और  शेर  जो ख़याल जैसे आया वैसे ही मैंने कागज़ से कह दिया इस लिए ये एक सीधी सरल भावनाओ की अभिव्यक्ति है ... वैसे तो जज्बातों का बटवारा नहीं किया जा सकता लेकिन साहित्यिक दृष्टिकोण से ये थोडा ज़रूरी लगा जो की मैंने किया हैं

पहला रंग है ग़ज़ल 
मैंने अलग अलग विषय पर अपने अंतर्मन को टटोला है और उसे शाब्दिक रूप दे कर आप की नज़र कर रहा हूँ कुछ हद तक उर्दू शब्दों का भी मैंने सहारा लिया है जिस का ज्ञान मुझे अब तक जो कुछ भी पड़ा और सुना है बस उसी तक सीमित है इसलिए मुझे बहुत अच्छा लगेगा यदि कोई मेरी किसी गलती को मेरी शैली को सुधारने के मंतव्य से मुझ तक पहुंचाएगा .

दूसरा रंग है कविता 
सरल शुद्ध भावनाओं का धरा प्रवाह है जो की  तुकबंदी और बैर जैसी लेखन कलाओं से आज़ाद है और बहते पानी की तरह है इसे महसूस करने के लिए केवल शाब्दिक ज्ञान ही नहीं आत्मा से संवेदनशील होना भी ज़रूरी है.

तीसरा रंग है शेर  
वो ख़याल है जो शब्दों के दायरे में बन्ध कर नहीं रह सकते और उसे लंबा खीचने से उस का रस नहीं रहता .कोई ऐसी बात जो बड़ी तहज़ीब से और कम शब्दों में कही गयी है जो की अपने आप में एक विषय है.

मेरे गुरु कविराज डॉ हरीश मुझसे कहते है ''लेखनी तब उठाया करो जब अन्दर से आवाज़ आये अन्यथा तुम सिर्फ शब्द लिख पाओगे और तुम्हारा लेखन लोगो को सूखे गन्ने जैसा बिना रस का लगेगा''

मैंने मेरे गुरु जी की इस बात को गाँठ बंद लिया है अब चाहे मैं सैकड़ों किताबे न लिख पाऊँ तो कोई शोभ नहीं, लिखूंगा तो तभी जब मेरी अंतरात्मा मुझे आवाज़ देगी ....
और हाँ एक बात और जो की बहुत ज़रूरी हैं मेरी नज़र में वो ये की लेखन कलाओं का यदि कहीं मैंने भावनावश होकर उल्लंघन किया हैं तो मैं आप सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ 

ये सभी शब्द नहीं जज़्बात है जो मैंने जिए और महसूस किये है 
पल पल ...

आशा है आपको जज्बातों के ये रंग पसंद आएंगे और आप दिल से महसूस करेंगे मेरा अंतर्मन ..

सदैव आपका

नरेश''मधुकर''        

Saturday, January 7, 2012

कुछ और ही नज़ारा होता


कुछ और ही नज़ारा होता 
उल्फत का जो सहारा होता 

कश्ती न  डूबती यूँ बेबस हो कर 
पास तुझ सा कोई किनारा होता

क्यूँ भटकता मैं यूँ  दर ब दर 
चमन मेरा जो तूने सवार होता

हारकर भी जीत लेता दुनिया
तुझे मेरा साथ जो गवारा होता

हरा हूँ मैं तेरी मर्ज़ी से मौला
वर्ना कोई तो आज हमारा होता

नरेश''मधुकर"

यादें ...

यादें ...
बिखरी यादें
धड़कती यादें

यादों के वो तमाम पल 
आज भी कितने जीवंत है

जैसे कोई अनजान डोर 
जैसे सागर का दूसरा छोर 
भटकता रास्ता 
पीछे छूटा हुआ मोड़ ...

सब जैसे खींच रहे हैं 

बस तेरी ओर
बस तेरी ओर
बस तेरी ओर ...

नरेश''मधुकर''

Friday, January 6, 2012

वक़्त बहुत कम है ...

वक़्त बहुत कम है 
आओ जी लें 

हंस बोल ले..

संजो ले ये पल..

जब हम साथ हैं 
हाथों में हाथ है
कोई और नहीं चाहिए
जो मेरा है मेरे पास है
जाने कब इन पलों को नींद आ जाये
और ये गुज़रा कल बन जाये 

धो ले अंतर्मन 
सवार ले जीवन
इसी को बांधे पाश में
यही हमारा मधुबन

प्रेम निश्चल पानी है
लहरों की रवानी है
युगों तक याद रखोगे 
वो भूली कहानी है

कहानी को कह ले सुन ले 
आओ जी ले
वक़्त बहुत कम है
आओ जी ले ...


नरेश''मधुकर''

कुछ पल और तुम्हारे पास रहने दो ...



नहीं जाना चाहता मैं तुम से दूर
कुछ पल और तुम्हारे पास रहने दो

खोने के डर से
पाने के शिखर तक 
उस वीरान बस्ती से 
इस अनजान शहर तक 

जो कुछ भी पाया 

सब कुछ तुम्हारा है ...
 

यादों की लहर में बहने दो ...
कुछ पल और तुम्हारे पास रहने दो ...
 

अविस्मरणीय पल हो
निर्मल जल हो

बरसों की भटकन  
तपस्या का फल हो

मुझे न रोको आज 
मेरे दिल की बात कहने दो

कुछ पल और तुम्हारे पास  रहने दो
कुछ पल और तुम्हारे पास रहने दो ...


नरेश''मधुकर''

Tuesday, January 3, 2012

मुद्दतों से ये दर सूना है ...



मुद्दतों से ये दर सूना है
अब इस तरफ आता नहीं कोई ...

आहट परिंदों की सुनके ज़िंदा है हम 
खबर अच्छी इस तरफ लाता नहीं कोई ...

दुनिया दारी इस कदर हावी है आज कल 
दिल लगाने की ज़हमत उठाता नहीं कोई ...

खता अपनों से खा कर बैठे हैं मधुकर 
जख्मों पे मरहम लगाता नहीं कोई

करके वादा शायद भूल गए है वो 
उन्हें भी अब याद दिलाता नहीं कोई ...

नरेश''मधुकर'' 

Sunday, January 1, 2012

तीसरा रंग "शेर"

                                 


अब तक नहीं लौटा हूँ तेरे शहर से सनम 
वक़्त मिले तो ढूंढ़ लेना मैं  वही कहीं हूँ ...



वो समझता होगा खुद को कारीगर बड़ा 
मैं अपने हिस्से की वफ़ा निभा रहा हूँ ...  



हो जायेगा तू इस क़दर दुनिया में शामिल ,
मुझे तुझसे  ये उम्मीद न थी ...



वो बेरूख है या बेबस ये तो वही जाने,
मैं ये जानता हूँ मुझे बेपनाह मोहब्बत है ...



मेरे दिल पे क्या बीता है मुझ ही से पूछ ''मधुकर''
हो गयी उम्र तमाम हवाओं के नाम ...


बचा कुछ नहीं मेरे पास गुज़रे वक़्त के सिवा,
दौर-ऐ-मुफलिसी में भी कितना माला माल हूँ मैं ...


निभाने की अहमियत वो क्या समझेंगे 'मधुकर'
जो हर रिश्ते से उसका नाम पूछते हैं... 



उसकी बेरुखी कर चुकी थी राज़ बेपर्दा 'मधुकर' 
फिर आखिर वही हुआ जो अक्सर होता है ...


आता नहीं रास हमे किसी का होना 'मधुकर'
हम तो अपनी तन्हाई में मेह्फूस है ...


हार कर किस किस से  कहेंगे की हम ठीक थे 'मधुकर'
यहाँ फलसफा वो लिखता है जिसकी हिस्से जीत है ...


कर आये फना सब कुछ राह ऐ उल्फत में 
अब इसका दोष किसी और को क्या दें  ...
  

वो भी हो गया आज दुनिया में शामिल 'मधुकर'
जो कहता था न जी पाएंगे तेरे बिन ...



हर कोई मसरूफ है अपनी ज़िन्दगी में ''मधुकर''
इस तन्हा दिल की सोचता नहीं कोई ....




कितना समझाऊं दिल को कुछ नहीं रखा जज्बातों में
अच्छे अच्छे हो गए विदा दुनिया से इन हालातों में ....




मुफलिसी ने मोहब्बत की इजाज़त न दी 'मधुकर'
अब लगता है काश कोई मेरा भी होता ...




करके खून मेरे ऐतबार का 'मधुकर'
वो समझता है वो समझदार हो गया
जनता था कमबख्त बेवफा है फिर भी
जाने क्यूँ मुझे उस से प्यार हो गया...



जब उजालों ने हमसे दुश्मनी कर ली 
खुद को जला कर हमने रौशनी कर ली ...



दिल के सौदे में मधुकर फिर कोई बदनाम हुआ
बा मुश्किल ही सही ये किस्सा भी तमाम हुआ ...



जीने न दिया रस्मो रिवाज़ ने
कुछ मुश्किल फितरत बड़ा रही है
राहे वफ़ा में खुद को कर बैठे तन्हा
ज़िन्दगी हर पल जीना सिखा रही है ...


मिला कुछ भी नहीं मोहब्बत से 'मधुकर'
कुछ प्यारे जज़्बात गवा बैठे 
ये बदहवासी किसी काम न आई 
अपने भीतर की हर बात गवा बैठे ...


उस शिद्दत औ बेबसी का क्या कहना 
बस नज़र भर ही बहुत थी उम्र भर के लिए ...



गम छुपाना नहीं आता उसको 'मधुकर'
अश्क रोक नहीं पाया वो हँसते हँसते ...



जीयु कैसे पलकों पे वो पल उठाये हुए
की यादों का बोझ अब बर्दाश्त नहीं मुझको...



उस शहर की हर राह का कर्ज़दार है 'मधुकर'
जहाँ कभी हम तुम बड़ा खुल के जीए ...



मेरे जाने की खबर पे भी वो हँसता रहा
शायद वो इस से मायूस बहुत था ...



हो गया मसरूफ वो अपनी ज़िन्दगी में 'मधुकर'
हम खड़े इंतज़ार-ऐ-वफ़ा करते रहे ...



टुटा दिओ तो सब कुछ सरे आम हुआ
इश्क नीलाम कौड़ियों के दाम हुआ



ज़िन्दगी अजब रंग दिखा रही है 
फिर मर मिटने की घडी आ रही है ...



तहजीबों में बंधा मैं तेरी राह तकता हूँ
अब तो बस ख़्वाबों में तेरे आ सकता हूँ
दुनियादारी हावी है इस क़दर मुझ पे
हाले दिल बस खुद को बता सकता हूँ ...



दर्दे ज़िन्दगी अब क्या बयाँ करूँ 'मधुकर'
ये इक हादसों की फेहरिस्त है खुदा खैर करे...



हुनारे मोहब्बत अपने बस की बात नहीं 'मधुकर'
दीवानगी का मसला दीवानों को ही मुबारक हो ...



मत कर बुलंदी का गुरूर 'मधुकर'
ये तो वो शै है जो पल पल रंग बदलती है ...



सरहदें कब बाँध पाई है परिंदों के पर 'मधुकर'
जब भी दिल किया तब उस पार चले ..



देख कर घटा ये ख्याल आया मधुकर
क्यों न आसूं मैं सबके इसे दे दू ..



कैसे समझाता मैं उसे फासलों का मतलब
जो मेरे दिल के इतने करीब था
होते हुए भी वो न हो सका मेरा
खता उसकी नहीं ये मेरा नसीब था ...



निभता साथ कैसे' वो बहती नदी थी 'मधुकर'
मुझे प्यार बहुत था और उसे मंजिलें बहुत ...



ऐ बादल यूँ शिद्दत से न बरस
देख कर तुझे वो मासूम बहुत याद अता हैं ...



डर नहीं लगता मुझे अब किसी सैलाब से
डरता हु तो मैं फ़क़त सिर्फ अपने आप से ...



जगी इक बार फिर परिंदों की ख्वाइश है
ये परों की नहीं हौसलों की आज़माइश है ...



कहाँ ले आई हमको ये काफिर किस्मत 
कभी हम नहीं तो कभी सनम नहीं ...



कुछ पल मिले थे प्यार के ,जो साथ गुज़ार दिए
पर उन पलों ने मधुकर ,सपने हज़ार दिए
छोड़ कर चल दिए अपने पराये सभी
बुरे वक़्त ने कई , चश्में उतार दिए



हो गया काबिज़ ज़ेहन पे ,बड़ा  कारीगर था वो
जिसको तबस्सुम मैं आज तक जी रहा हूँ ...



रोकता कैसे मैं उसको जाने से
जब उसे मुझ पे ऐतबार ही न था ..
शायद मैं ही गलत समझ बैठा था मधुकर
उसे कभी मुझ से प्यार ही न था ...



न चला पता वो कब हट गया पीछे
मैं बड़ी शिद्दत से जिसे प्यार करता रहा
जाने क्या लोग रिश्तों को समझते हैं मधुकर
सवाल ये खुद से बार बार करता रहा ...



दगा देगी ये ज़िन्दगी इस क़दर
होता पता तो कब के मर जाते ..



भुलाऊ कैसे वो तबस्सुम मधुकर
मिली थी जो बड़ी मुद्दतों के बाद ...



मै खुश हूँ वो अब तक मुझे भूला नहीं मधुकर
ये तो मै ही था जो उसे बेवफा समझ बैठा ...


साथ छूट जाना किसी का बेवफाई नहीं मधुकर
एहसासे वफ़ा काफी है उम्र भर निभाने के लिए ...


हर शख्स पे काबिज़ दुनिया की वेह्शत है 
अब यहाँ प्यार की किस को फुर्सत  है
जीता हैं कौन इस जहाँ के लिए मधुकर
कायम दीवानों के बीच अपनी शोहरत है 


झूठ को जब जब सवारा जाएगा
सच सलीबों पर चदाया जाएगा
हदे वेहशत पार मत कर ऐ इंसान
क़यामत के रोज़ बहुत पछताएगा ...


कुछ तो कर गुज़ारना हैं मधुकर इस ज़माने में 
यूँ तो क्या रखा हैं बस आने और चले जाने में 


बचा कोई भी नहीं इस दुनियां में साफदिल मधुकर 
हर दिल पे अपनों की दी खरोंचे दिखाई देती हैं 


साथ किसी का हमे नसीब न हुआ वर्ना 
देखता ये ज़माना की वफ़ा किसको कहते हैं 


इस रंगीन ज़माने से हम बहुत बेहतर हैं मधुकर 
क्यूंकि हमने देखा हैं रंगों को अक्सर बदलते हुए ...


बड़ी मुश्किल है डगर सहारा नहीं कोई 
हर तरफ भीड़ हैं बस हमारा नहीं कोई 
सोचती हैं कश्ती गर्के आब होने से पहले 
उसकी किस्मत शायद अब सहारा नहीं कोई 


उन्हें तलाश हैं न जाने किस बहार की 
मेरी मोहब्बत उन्हें दिखाई नहीं देती 


इस जिंदगी का मधुकर अजब ही फसाना हैं 
हम ख़ाक से आयें है और ख़ाक में जाना हैं ...


जाओ जहाँ भरा है दिमागदारों से मधुकर 
हम खाक नशीनों के पास क्या रखा हैं 
जेब भरी लिए घूमते है सब यहाँ पर  
हमने जेब में भी दिल बिठा रखा हैं ...


ढाते हैं अपने ही सितम  क्या कोई गैर करे 
बदला बदला है मिज़ाजे वक़्त अब खुदा खैर करे 


होता है तय सफ़र कोई अंजाम नहीं होता 
कुछ रिश्तों का मधुकर नाम नहीं होता ...


इस कदर न मुझसे प्यार कर 'मधुकर'
जलता दरिया हूँ तू भी जल जाएगा 
ये हरारत यकीनन उल्फत की हैं 
काफिर ज़माने को पता चल जाएगा ...


ऐ क़यामत तेरे आने का शुक्रिया 
की थक गया था बहुत इस राह चलते चलते 


ऐ गुज़रते वक़्त ज़रा रुक कर तो देख 
किसी को कितनी चाहत है तेरे ठहर जाने की 


फिर इक बार ज़िंदा ख्वाईश हुई 
कशिश हद से गुज़री और बारिश हुई  ...


मुद्दतों बाद आज बरस रही है मुझ पे 
बारिशे उल्फत का यारो क्या कहना 


खुद अपने गम पे रोटी है बारिश 
इस तनहा दिल की सोचता नहीं कोई  ...


ऐ बरसते बादल ज़रा झुक कर के देख 
कैसे गम छिपाया है मेरे यार ने ...