अब तक नहीं लौटा हूँ तेरे शहर से सनम
वक़्त मिले तो ढूंढ़ लेना मैं वही कहीं हूँ ...
वो समझता होगा खुद को कारीगर बड़ा
मैं अपने हिस्से की वफ़ा निभा रहा हूँ ...
हो जायेगा तू इस क़दर दुनिया में शामिल ,
मुझे तुझसे ये उम्मीद न थी ...
वो बेरूख है या बेबस ये तो वही जाने,
मैं ये जानता हूँ मुझे बेपनाह मोहब्बत है ...
मेरे दिल पे क्या बीता है मुझ ही से पूछ ''मधुकर''
हो गयी उम्र तमाम हवाओं के नाम ...
बचा कुछ नहीं मेरे पास गुज़रे वक़्त के सिवा,
दौर-ऐ-मुफलिसी में भी कितना माला माल हूँ मैं ...
निभाने की अहमियत वो क्या समझेंगे 'मधुकर'
जो हर रिश्ते से उसका नाम पूछते हैं...
उसकी बेरुखी कर चुकी थी राज़ बेपर्दा 'मधुकर'
फिर आखिर वही हुआ जो अक्सर होता है ...
आता नहीं रास हमे किसी का होना 'मधुकर'
हम तो अपनी तन्हाई में मेह्फूस है ...
हार कर किस किस से कहेंगे की हम ठीक थे 'मधुकर'
यहाँ फलसफा वो लिखता है जिसकी हिस्से जीत है ...
कर आये फना सब कुछ राह ऐ उल्फत में
अब इसका दोष किसी और को क्या दें ...
वो भी हो गया आज दुनिया में शामिल 'मधुकर'
जो कहता था न जी पाएंगे तेरे बिन ...
हर कोई मसरूफ है अपनी ज़िन्दगी में ''मधुकर''
इस तन्हा दिल की सोचता नहीं कोई ....
कितना समझाऊं दिल को कुछ नहीं रखा जज्बातों में
अच्छे अच्छे हो गए विदा दुनिया से इन हालातों में ....
मुफलिसी ने मोहब्बत की इजाज़त न दी 'मधुकर'
अब लगता है काश कोई मेरा भी होता ...
करके खून मेरे ऐतबार का 'मधुकर'
वो समझता है वो समझदार हो गया
जनता था कमबख्त बेवफा है फिर भी
जाने क्यूँ मुझे उस से प्यार हो गया...
जब उजालों ने हमसे दुश्मनी कर ली
खुद को जला कर हमने रौशनी कर ली ...
दिल के सौदे में मधुकर फिर कोई बदनाम हुआ
बा मुश्किल ही सही ये किस्सा भी तमाम हुआ ...
जीने न दिया रस्मो रिवाज़ ने
कुछ मुश्किल फितरत बड़ा रही है
राहे वफ़ा में खुद को कर बैठे तन्हा
ज़िन्दगी हर पल जीना सिखा रही है ...
मिला कुछ भी नहीं मोहब्बत से 'मधुकर'
कुछ प्यारे जज़्बात गवा बैठे
ये बदहवासी किसी काम न आई
अपने भीतर की हर बात गवा बैठे ...
उस शिद्दत औ बेबसी का क्या कहना
बस नज़र भर ही बहुत थी उम्र भर के लिए ...
गम छुपाना नहीं आता उसको 'मधुकर'
अश्क रोक नहीं पाया वो हँसते हँसते ...
जीयु कैसे पलकों पे वो पल उठाये हुए
की यादों का बोझ अब बर्दाश्त नहीं मुझको...
उस शहर की हर राह का कर्ज़दार है 'मधुकर'
जहाँ कभी हम तुम बड़ा खुल के जीए ...
मेरे जाने की खबर पे भी वो हँसता रहा
शायद वो इस से मायूस बहुत था ...
हो गया मसरूफ वो अपनी ज़िन्दगी में 'मधुकर'
हम खड़े इंतज़ार-ऐ-वफ़ा करते रहे ...
टुटा दिओ तो सब कुछ सरे आम हुआ
इश्क नीलाम कौड़ियों के दाम हुआ
ज़िन्दगी अजब रंग दिखा रही है
फिर मर मिटने की घडी आ रही है ...
तहजीबों में बंधा मैं तेरी राह तकता हूँ
अब तो बस ख़्वाबों में तेरे आ सकता हूँ
दुनियादारी हावी है इस क़दर मुझ पे
हाले दिल बस खुद को बता सकता हूँ ...
दर्दे ज़िन्दगी अब क्या बयाँ करूँ 'मधुकर'
ये इक हादसों की फेहरिस्त है खुदा खैर करे...
हुनारे मोहब्बत अपने बस की बात नहीं 'मधुकर'
दीवानगी का मसला दीवानों को ही मुबारक हो ...
मत कर बुलंदी का गुरूर 'मधुकर'
ये तो वो शै है जो पल पल रंग बदलती है ...
सरहदें कब बाँध पाई है परिंदों के पर 'मधुकर'
जब भी दिल किया तब उस पार चले ..
देख कर घटा ये ख्याल आया मधुकर
क्यों न आसूं मैं सबके इसे दे दू ..
कैसे समझाता मैं उसे फासलों का मतलब
जो मेरे दिल के इतने करीब था
होते हुए भी वो न हो सका मेरा
खता उसकी नहीं ये मेरा नसीब था ...
निभता साथ कैसे' वो बहती नदी थी 'मधुकर'
मुझे प्यार बहुत था और उसे मंजिलें बहुत ...
ऐ बादल यूँ शिद्दत से न बरस
देख कर तुझे वो मासूम बहुत याद अता हैं ...
डर नहीं लगता मुझे अब किसी सैलाब से
डरता हु तो मैं फ़क़त सिर्फ अपने आप से ...
जगी इक बार फिर परिंदों की ख्वाइश है
ये परों की नहीं हौसलों की आज़माइश है ...
कहाँ ले आई हमको ये काफिर किस्मत
कभी हम नहीं तो कभी सनम नहीं ...
कुछ पल मिले थे प्यार के ,जो साथ गुज़ार दिए
पर उन पलों ने मधुकर ,सपने हज़ार दिए
छोड़ कर चल दिए अपने पराये सभी
बुरे वक़्त ने कई , चश्में उतार दिए
हो गया काबिज़ ज़ेहन पे ,बड़ा कारीगर था वो
जिसको तबस्सुम मैं आज तक जी रहा हूँ ...
रोकता कैसे मैं उसको जाने से
जब उसे मुझ पे ऐतबार ही न था ..
शायद मैं ही गलत समझ बैठा था मधुकर
उसे कभी मुझ से प्यार ही न था ...
न चला पता वो कब हट गया पीछे
मैं बड़ी शिद्दत से जिसे प्यार करता रहा
जाने क्या लोग रिश्तों को समझते हैं मधुकर
सवाल ये खुद से बार बार करता रहा ...
दगा देगी ये ज़िन्दगी इस क़दर
होता पता तो कब के मर जाते ..
भुलाऊ कैसे वो तबस्सुम मधुकर
मिली थी जो बड़ी मुद्दतों के बाद ...
मै खुश हूँ वो अब तक मुझे भूला नहीं मधुकर
ये तो मै ही था जो उसे बेवफा समझ बैठा ...
साथ छूट जाना किसी का बेवफाई नहीं मधुकर
एहसासे वफ़ा काफी है उम्र भर निभाने के लिए ...
हर शख्स पे काबिज़ दुनिया की वेह्शत है
अब यहाँ प्यार की किस को फुर्सत है
जीता हैं कौन इस जहाँ के लिए मधुकर
कायम दीवानों के बीच अपनी शोहरत है
झूठ को जब जब सवारा जाएगा
सच सलीबों पर चदाया जाएगा
हदे वेहशत पार मत कर ऐ इंसान
क़यामत के रोज़ बहुत पछताएगा ...
कुछ तो कर गुज़ारना हैं मधुकर इस ज़माने में
यूँ तो क्या रखा हैं बस आने और चले जाने में
बचा कोई भी नहीं इस दुनियां में साफदिल मधुकर
हर दिल पे अपनों की दी खरोंचे दिखाई देती हैं
साथ किसी का हमे नसीब न हुआ वर्ना
देखता ये ज़माना की वफ़ा किसको कहते हैं
इस रंगीन ज़माने से हम बहुत बेहतर हैं मधुकर
क्यूंकि हमने देखा हैं रंगों को अक्सर बदलते हुए ...
बड़ी मुश्किल है डगर सहारा नहीं कोई
हर तरफ भीड़ हैं बस हमारा नहीं कोई
सोचती हैं कश्ती गर्के आब होने से पहले
उसकी किस्मत शायद अब सहारा नहीं कोई
उन्हें तलाश हैं न जाने किस बहार की
मेरी मोहब्बत उन्हें दिखाई नहीं देती
इस जिंदगी का मधुकर अजब ही फसाना हैं
हम ख़ाक से आयें है और ख़ाक में जाना हैं ...
जाओ जहाँ भरा है दिमागदारों से मधुकर
हम खाक नशीनों के पास क्या रखा हैं
जेब भरी लिए घूमते है सब यहाँ पर
हमने जेब में भी दिल बिठा रखा हैं ...
ढाते हैं अपने ही सितम क्या कोई गैर करे
बदला बदला है मिज़ाजे वक़्त अब खुदा खैर करे
होता है तय सफ़र कोई अंजाम नहीं होता
कुछ रिश्तों का मधुकर नाम नहीं होता ...
इस कदर न मुझसे प्यार कर 'मधुकर'
जलता दरिया हूँ तू भी जल जाएगा
ये हरारत यकीनन उल्फत की हैं
काफिर ज़माने को पता चल जाएगा ...
ऐ क़यामत तेरे आने का शुक्रिया
की थक गया था बहुत इस राह चलते चलते
ऐ गुज़रते वक़्त ज़रा रुक कर तो देख
किसी को कितनी चाहत है तेरे ठहर जाने की
फिर इक बार ज़िंदा ख्वाईश हुई
कशिश हद से गुज़री और बारिश हुई ...
मुद्दतों बाद आज बरस रही है मुझ पे
बारिशे उल्फत का यारो क्या कहना
खुद अपने गम पे रोटी है बारिश
इस तनहा दिल की सोचता नहीं कोई ...
ऐ बरसते बादल ज़रा झुक कर के देख
कैसे गम छिपाया है मेरे यार ने ...