मुद्दतों से ये दर सूना है
अब इस तरफ आता नहीं कोई ...
आहट परिंदों की सुनके ज़िंदा है हम
खबर अच्छी इस तरफ लाता नहीं कोई ...
दुनिया दारी इस कदर हावी है आज कल
दिल लगाने की ज़हमत उठाता नहीं कोई ...
खता अपनों से खा कर बैठे हैं मधुकर
जख्मों पे मरहम लगाता नहीं कोई
करके वादा शायद भूल गए है वो
उन्हें भी अब याद दिलाता नहीं कोई ...
नरेश''मधुकर''
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