Saturday, January 7, 2012

यादें ...

यादें ...
बिखरी यादें
धड़कती यादें

यादों के वो तमाम पल 
आज भी कितने जीवंत है

जैसे कोई अनजान डोर 
जैसे सागर का दूसरा छोर 
भटकता रास्ता 
पीछे छूटा हुआ मोड़ ...

सब जैसे खींच रहे हैं 

बस तेरी ओर
बस तेरी ओर
बस तेरी ओर ...

नरेश''मधुकर''

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