Wednesday, January 11, 2012

जज्बातों के रंग

प्रिय मित्रो ,

              ''जज्बात्नामा '' तीन रंगों में ढाला गया हैं जिस में जज्बातों के अलग अलग रंग है और वो रंग है ग़ज़ल , कविता और  शेर  जो ख़याल जैसे आया वैसे ही मैंने कागज़ से कह दिया इस लिए ये एक सीधी सरल भावनाओ की अभिव्यक्ति है ... वैसे तो जज्बातों का बटवारा नहीं किया जा सकता लेकिन साहित्यिक दृष्टिकोण से ये थोडा ज़रूरी लगा जो की मैंने किया हैं

पहला रंग है ग़ज़ल 
मैंने अलग अलग विषय पर अपने अंतर्मन को टटोला है और उसे शाब्दिक रूप दे कर आप की नज़र कर रहा हूँ कुछ हद तक उर्दू शब्दों का भी मैंने सहारा लिया है जिस का ज्ञान मुझे अब तक जो कुछ भी पड़ा और सुना है बस उसी तक सीमित है इसलिए मुझे बहुत अच्छा लगेगा यदि कोई मेरी किसी गलती को मेरी शैली को सुधारने के मंतव्य से मुझ तक पहुंचाएगा .

दूसरा रंग है कविता 
सरल शुद्ध भावनाओं का धरा प्रवाह है जो की  तुकबंदी और बैर जैसी लेखन कलाओं से आज़ाद है और बहते पानी की तरह है इसे महसूस करने के लिए केवल शाब्दिक ज्ञान ही नहीं आत्मा से संवेदनशील होना भी ज़रूरी है.

तीसरा रंग है शेर  
वो ख़याल है जो शब्दों के दायरे में बन्ध कर नहीं रह सकते और उसे लंबा खीचने से उस का रस नहीं रहता .कोई ऐसी बात जो बड़ी तहज़ीब से और कम शब्दों में कही गयी है जो की अपने आप में एक विषय है.

मेरे गुरु कविराज डॉ हरीश मुझसे कहते है ''लेखनी तब उठाया करो जब अन्दर से आवाज़ आये अन्यथा तुम सिर्फ शब्द लिख पाओगे और तुम्हारा लेखन लोगो को सूखे गन्ने जैसा बिना रस का लगेगा''

मैंने मेरे गुरु जी की इस बात को गाँठ बंद लिया है अब चाहे मैं सैकड़ों किताबे न लिख पाऊँ तो कोई शोभ नहीं, लिखूंगा तो तभी जब मेरी अंतरात्मा मुझे आवाज़ देगी ....
और हाँ एक बात और जो की बहुत ज़रूरी हैं मेरी नज़र में वो ये की लेखन कलाओं का यदि कहीं मैंने भावनावश होकर उल्लंघन किया हैं तो मैं आप सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ 

ये सभी शब्द नहीं जज़्बात है जो मैंने जिए और महसूस किये है 
पल पल ...

आशा है आपको जज्बातों के ये रंग पसंद आएंगे और आप दिल से महसूस करेंगे मेरा अंतर्मन ..

सदैव आपका

नरेश''मधुकर''        

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