मौला जाने ये दिल परेशाँ क्यूँ है
बिन उसके ज़िन्दगी वीराँ क्यूँ हैं
छोड़ जाता है सदा हमसफ़र तन्हा
हर बार मेरी वही दास्ताँ क्यूँ है
गर करती हो मुझसे इतनी नफरत
नम आँखों में बेबस बयाँ क्यूँ है
बे हिजाब भूल गया वो सब कुछ
दर मेरा महफिले मह्कशां क्यूँ है
पूछता है जब कोई आवारगी का सबब
लगता मैकदा कूचा-ऐ-दिल्बराँ क्यूँ है
मिट चुका हूँ ज़िन्दगी से उसकी 'मधुकर'
फिर बाकि उल्फत के निशाँ क्यूँ है
नरेश ''मधुकर''
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