Monday, January 23, 2012

सपने ...

सपने ...

ढेर सरे सपने

इंसान इन सपनो के पंछियों को 
सदियों अपनी पलकों पे पालता  है
इन्हें दाना डालता है
इनके लौटने का इंतज़ार करता है
सोचता है
कभी तो ये मुक्क़मिल होंगे
और वो जी भर के जीएगा
इनके साथ...
और भूल जायेगा
सारी तकलीफ
सारे गम
किस्मत कुछ और ही करती है
कुछ सपने मर जाते है
कुछ खो जाते है
कुछ धीमे पड़ जाते है
कुछ दूर निकल जाते है
फिर भी इंसान
उन्हें भूल नहीं पाता
उनका बदहवास पीछा करता है
उन्हें पकड़ने की कोशिश करता है
और चाहता है वो उनके साथ रहे
और उनके लिए सब कुछ करता है
सब कुछ ...
जो कभी उसने सोचा ही न था
एक दिन उसे लगता है शाम हो गयी है
उसकी उम्र उसका साथ नहीं दे रही
और वो इन पंछियों के साथ
बहुत दूर निकल आया है
इतनी दूर की वो अब
वहां से वापस नहीं जा सकता
न जाना चाहता है
साँसे धीमी पड़ रही है
आँखें गहरा रही है लेकिनफिर भी वो 
उन सपनो को जिंदा रखने की कोशिश में  हैं 
की काश ...
पूरे हो जाये
काश पूरे हो जाते 
वो सपने ...

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