कुछ और ही नज़ारा होता
उल्फत का जो सहारा होता
कश्ती न डूबती यूँ बेबस हो कर
पास तुझ सा कोई किनारा होता
क्यूँ भटकता मैं यूँ दर ब दर
चमन मेरा जो तूने सवार होता
हारकर भी जीत लेता दुनिया
तुझे मेरा साथ जो गवारा होता
हरा हूँ मैं तेरी मर्ज़ी से मौला
वर्ना कोई तो आज हमारा होता
नरेश''मधुकर"
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