Saturday, January 7, 2012

कुछ और ही नज़ारा होता


कुछ और ही नज़ारा होता 
उल्फत का जो सहारा होता 

कश्ती न  डूबती यूँ बेबस हो कर 
पास तुझ सा कोई किनारा होता

क्यूँ भटकता मैं यूँ  दर ब दर 
चमन मेरा जो तूने सवार होता

हारकर भी जीत लेता दुनिया
तुझे मेरा साथ जो गवारा होता

हरा हूँ मैं तेरी मर्ज़ी से मौला
वर्ना कोई तो आज हमारा होता

नरेश''मधुकर"

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