Wednesday, February 1, 2012

किधर जाऊं ...


तुझको ढूँढू कहाँ,मै किधर जाऊं
सोचता हूँ फिर उस ज़ालिम शहर जाऊं

आया न अब तक वो मोड़ मधुकर
लगता हो जहाँ दो पल ठहर जाऊं 

जिसे ओडे बड़ी शिद्दत से रोये हमतुम 
सोचता हूँ आज उस शजर जाऊं 

तेरे इंतज़ार में काट ली शामों सेहर 
तू न आया तो सोचता हूँ मर जाऊं 

अब तक तो कुछ दे न पाया तुझको 
खैर ये ग़ज़ल ही तेरे नाम कर जाऊं 


नरेश 'मधुकर'