एक था रास्ता
और एक थी दूरी ...
दोनों बेसुध
दोनों बेखबर
दोनों पागल
एक दुसरे के लिए ...
वक्त की सतह पे
दोनों साथ साथ
चलते थे ...
हँसते
खिलखिलाते
ज़रा ज़रा सी बात पे खुश होते
एक दूजे के साथ
पल में खुश
पल में दुखी
जग से परे
हाथों में हाथ डाले
गले में बाहें डाले
बस चलते रहते ...
प्यार में डूबे हुए
दूरी रास्ते के बिन तय न हो पाती
और
रास्ता दूरी के बिन भटक जाता
अचानक ...
एक दिन न जाने
क्या हुआ
सब बदल गया
जाने
किस की नज़र लग गयी
दूरी बहुत आगे निकल गयी
और रास्ता ..
रास्ता वही खड़ा देखता रहा
चाहते हुए भी उसे रोक नहीं पाया
और वो बादलों को चीरती हुई
आँखों से ओझल हो गयी
रास्ता अकेला पड़ गया
और तभी से अकेला है
आज तक
लेकिन ...
आज भी
उनका प्रेम अमर है
दुनिया में
दोनों को
एक साथ याद किया जाता है ...
नरेश मधुकर
beautiful thought ...
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