Monday, April 23, 2012

सोचिये ...


जाने ये कैसा जहां है सोचिये 
जग को जाने क्या हुआ है ,सोचिये 

सल्तनते आम  में नहीं कदर फकीरों की 
और कौन कौन कहाँ है ,सोचिये   

सुनता नहीं कोई किसी की यहाँ पर 
खामोशी का ये बयान है ,सोचिये 

कहीं तो लगी आग है इस वीरान शहर में 
जिस तरफ देखो धुआं हैं ,सोचिये 

मुफलिसों को मकबरा तक नसीब नहीं 
फिर वो आखिर क्या खुदा है ,सोचिये  

क़यामत के वक़्त तक कायम रहे सच  
अपनी तो बस इतनी दुआ है ,सोचिये 

नरेश "मधुकर"




Friday, April 13, 2012

ख्वाइश ...


जब ख्वाइश ख़्वाबों के सांचे में ढल जाती हैं
खुशनुमा जिंदगियां अक्सर बदल जाती हैं

दौड़ मोहब्बत की जीत पाना मुश्किल हैं इसमें  

हकीकत हसरत से आगे निकल जाती हैं  

ये दिलवालों का शहर है दिमागदारों हैरान मत हो
सिक्के नहीं यहाँ,प्यार की कौडियाँ भी चल जाती हैं

नहीं मुमकिन इस तपिश को थामे रखना ऐ दोस्त
ऐसी कोशिशों में अक्सर उंगलियाँ जल जाती हैं

न देखो मुड़ कर मेरी परवाह न करो 'मधुकर'

मेरी वफाएं खता खाकर अक्सर संभल जाती हैं ... 

नरेश 'मधुकर'