Wednesday, June 20, 2012

मोहब्बत या तन्हाई ...

दो सहेलियां थीं
मोहब्बत और तन्हाई
दोनों साथ  साथ  पली
बड़ी
और जवान हुई
दोनों सहेलियों को इक  रोज़
एक ही दिल से प्यार हो गया
जहाँ जहाँ दिल को   मोहब्बत मिलती
तन्हाई भी उसके पीछे पीछे चली आती
वो दिल बड़ा भोला और सरल था
वो दोनों के रिश्ते के बीच की कश म कश से बेखबर
बस
ख़ामोशी से सारे पल निभाता रहा

एक दिन अचानक ...
मोहब्बत उस से नाराज़ हो गयी
दिल उसे खूब मनाने लगा
वो नहीं मानी
तन्हाई ये सब खड़ी चुपके चुपके
देख रही थी
उसे बड़ा गुस्सा आ रहा था मोहब्बत पे
और बड़ी जलन भी हो रही थी
दिल की मोहब्बत के लिए तड़प देख कर
लेकिन वो खामोश खड़ी देखती रही
दिल के लाख चाहने व रोकने पर भी 
उसकी मोहब्बत उस से 
सदा सदा के लिए नाराज़ हो कर 
दूर चली गयी ...
और दिल
दिल वही हताश
टूटा हुआ
खामोश खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा
दिल बीते लम्हों को याद कर
रोने लगा
तभी तन्हाई दबे पाँव उसके पास आयी
तन्हाई ने दिल का हाथ थामा
और जीने की हिम्मत देने लगी
उसने उसके आँसू पोछे
और उम्र भर दिल का साथ निभाने का वादा किया
शुरुआत में दिल थोडा घबराया
थोडा परेशान हुआ
पर धीरे धीरे
दिल को तन्हाई अच्छी लगने लगी
वो और उसकी तन्हाई घंटों साथ बिताने लगे
और जीवन एक बार फिर
चल पड़ा

आज कई साल बाद
उम्र के आखरी पडाव में
वही दिल सोच में पड़ गया है
और बार बार खुद से एक  ही सवाल करता है
की
आखिर
कौन बेहतर था
मोहब्बत या तन्हाई ...

नरेश 'मधुकर '

No comments:

Post a Comment