Wednesday, January 16, 2013

एक थी जिंदगी


एक थी जिंदगी 
और एक था सापना 
दोनों मदहोश
दोनों मदमस्त 
दोनों पागल ..

दोनों एक दूजे 
पे फना ...
जिंदगी सपने से न मिलती 
तो परेशान 
और सपना जिंदगी बिन अधूरा
यादों कि पगडंडियों पे
दोनों हाथों में हाथ डाले
चलते रहते
घंटों तक
न वक्त का पता
न कोई होश ओ हवास
बस जिंदगी सपने को आँखों में
बसाए चलती रहती
और सपना जिंदगी पे फ़िदा
साथ निभाता रहता
बिन सोचे
बिन समझे
सबसे अंजान
बारिश का मौसम आया
पगडंडी पे गंदला पानी भरने लगा
सपना उस पानी से
बचने के लिए
बच के चलने लगा
लड़खडाया
गिरा
और टूट गया
और ज़िंदगी हैरान
खड़ी उस सपने को
टूटते हुए देखती रही 

और कुछ भी न कर सकी ...

जय श्री कृष्णा 
नरेश मधुकर 

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