Sunday, June 30, 2013

मदहोशी लिए फिरता हूँ ...




घने शोर में यूँ खामोशी लिए फिरता हूँ
मैं हथेली पे ज़िंदगी लिए फिरता हूँ

होश हवास तुझी को मुबारक ऐ दुनियां
मैं तो मेरी मदहोशी लिए फिरता हूँ

जाने दिल लगा के कैसे खुश हो तुम
मैं तो इक मायूसी लिए फिरता हूँ

पड़ ना ले कोई गम आँखों में मधुकर
मैं जान बूझ कर बेहोशी लिए फिरता हूँ

नरेश मधुकर

Monday, June 24, 2013

मृगतृष्णा ...




ये जीवन एक भ्रम है ... 
एक मृगतृष्णा 
जो हर पल नए नए ख्वाब दिखाती है 
सुंदर ख्वाब 
सुनहरे ख्वाब 
वो ख्वाब जो 
दरअसल होते ही नहीं
उन्हें बिखरना है 
टूटना है 
एक दिन 
फिर भी हम 
उन्ख्वाबो के पंछेयों को
पकड़ के बैठ जाते है
उन्हें तो उड़ ही जाना है
एक दिन
फिर भी बस उस एहसास कि
आदत
छूटती नहीं
एक मीठे ज़ेहर सा
ये एहसास
बस तड़प देता है
केवल तड़प
केवल अकेलापन
केवल दुःख ...

नरेश मधुकर
जय श्री कृष्ण ...

Saturday, June 1, 2013

सफ़र

हर शख्स तय खुद का सफर करता हैं 
चाहे मुश्किल हो फिर भी बसर करता हैं 

गालियाँ कितनी भी हो चाहे दिल के करीब 
हैसियत उनकी तय ये ज़ालिम शहर करता हैं 

दर्द बतलाना किसी को न मुमकिन हो शायद 
तासीरे दर्द तय अलविदा का पहर करता हैं 

दिल दुखाये मेरा ये इस दुनिया का क्या दम 
आह निकलती हैं जब कोई अपना ये कहर करता हैं

लिखता हू स्याही से दर्द कागज़ पे मधुकर
देखें कितना ये इस दुनिया पे असर करता हैं

नरेश मधुकर

2013