ये जीवन एक भ्रम है ...
एक मृगतृष्णा
जो हर पल नए नए ख्वाब दिखाती है
सुंदर ख्वाब
सुनहरे ख्वाब
वो ख्वाब जो
दरअसल होते ही नहीं
उन्हें बिखरना है
टूटना है
एक दिन
फिर भी हम
उन्ख्वाबो के पंछेयों को
पकड़ के बैठ जाते है
उन्हें तो उड़ ही जाना है
एक दिन
फिर भी बस उस एहसास कि
आदत
छूटती नहीं
एक मीठे ज़ेहर सा
ये एहसास
बस तड़प देता है
केवल तड़प
केवल अकेलापन
केवल दुःख ...
नरेश मधुकर
जय श्री कृष्ण ...
No comments:
Post a Comment