Monday, July 15, 2013


नरेश  रघानी  मधुकर  के  कोमल  ह्रदय  से स्फुटित  कविताएँ  जो  उनकीपुस्तक ‘ज़ज्बातनामा ’ के  रूप  में  हमारे  समक्ष  आई  हैं  वह  किसी  भी  पाठक   को  एक झरने   के सदृश्य  अपने  साथ  बहा  लेने  को  सक्षम  हैं . समाज  के  कार्यों  से  जुड़े एक  कर्मठ  सेवी होने के नातेमुझे  लगा  की  शायद  कविता  उनके  बस  की  बात नहीं  होगी  लेकिन  उन्होंने  मुझको  गलत  साबित  करते  हुए  एक  से  एक  ऐसी रचनाओं  का  सृजन  किया कि बरबस  ही  मुख  से ‘ वाह ’ और 'अति सुंदरजैसेशब्द  निकल आतें हैं अपनी  समस्त  भावनाओं के  साथ  न्याय  करते  हुए  उन्होंने हमारे  सामने  एक  काव्य  रचनाओं  का  भंडार  रख  दिया  है. उनकी यह काव्यधारा अब  तक  की  जीवन  यात्रा  के  दौरान की  प्यास , थकान , प्रेमआशा-निराशादर्दऔर देशप्रेम के  अनुभवों एवं अनुभूतिओं को  समेटे उनकी इन विचारों कीअभिव्यक्तीओं को ग़ज़लकविता और शेरो -शायरी के माध्यम से पाठको तक पहुँचाने का उनका एक    प्रशंसनीय प्रयास हैपर कंही  कंही इस बात का आभासजरूर होता है कि कवि शायद निराशावादी तो नहीं पर मैं समझता हूँ कि उनमे निराशाया कुंठा कि बजाय वैरागीपन जरूर हैउनकी  कुछ  रचनाएँ  जैसे  कि  ‘ मृगतृष्णा ’, ‘सफ़र ’, रास्ता  और  दूरी ’, ‘ मदहोशी  लिए   फिरता  हूँ ’ ‘  मेरे  रहनुमा ’,‘इन्दर्धनुषरातवक्तबहुत कम हैयाद तथा   और  अन्य  कवितांए   जीवन  से प्राप्त  हुए  अनुभवों  का  एक  निचोड़  है . 

एक तरफ जहाँ नरेश जी लिखते हैं :-

मैं हादसे लिखता गया  और फसाना बन गया
खुद से बाते ख़त्म की ,जज़्बात नामा बन गया....... या
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  जमीं  मिली    आसमान  मुझको 
  मिली  मंजिल    कारवां  मुझको ...........
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वंही कवि एक प्यार का दूत बन कर भी उभरता है:- .

नफरतों  से  कोई  जीत    पाया  दुनिया 
मोहब्बत  एक  बार  बेशुमार  करके  देख
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कवि, देश प्रेमी होने के साथ साथ के एक दृढ निश्चयी व्यक्तिव भी हैं:

खुद  खुद मंजिल का पता जान लेते हैं    
दीवाने कर गुजरते हैं जो दिल में ठान लेते हैं
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मेरा मानना कि एक  कवि कि सफलता का राज़ उसकी सत्यवादिता एवं स्पष्टवादिताहैजज्बातनामा इसमें खरा उतरती है.  मुझको इसमें कोई संदेह नहीं कि 'जज्बातनामापाठकों को तरह तरह के  जज्बातों से रूबरू करा उनको दिलों में एक पैठ बनाने मेंकामयाब होगी..
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक- कवि

Monday, July 8, 2013

चाहता हूँ




तुम को मैं सब कुछ बताना चाहता हूँ
फिर ये किस्मत अजमाना चाहता हूँ

मर ना जाऊं ऐसा मुझको डर नहीं
ज़िंदगी पर आशिकाना चाहता हूँ

जा चुका हैं दूर इतना अब वो मुझसे
मौत का मैं अब बहाना चाहता हूँ

ज़िंदगी कि कशमकश से घिरा 'मधुकर'
जीना फिर गुजरा ज़माना चाहता हूँ

खूब देखा हैं वफाओं का मैंने रास्ता 
लौट के अब घर को आना चाहता हूँ


नरेश मधुकर
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Thursday, July 4, 2013

अब मुझे किसी से प्रीत नहीं



अब मुझे किसी से प्रीत नहीं 
जीवन का कोई गीत नहीं
टूट गए वीणा के तार
अब शेष कोई संगीत नहीं

सब खोया हैं क्या पाया है
अपनों ने रंग दिखलाया हैं
ठगा गया है ऐसा मन
अब निभती कोई रीत नहीं

जाने क्या क्या कर जाते हैं
दुनियां को राह दिखाते हैं
फिर भी आदर्शो कि जग में
सदा हार हुई हैं जीत नहीं

अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं

जीवन भर नहीं पाते हैं
लुटा के सब कुछ जाते हैं
जब प्राण पखेरू उड़ जाएँ
शिलालेखों पे जी जाते है

इसीलिए मुझको यारों
ये दुनियां अब नहीं भाती हैं
छोड़ कर देव पुरुषों को जो
असुरों के पग लग जाती

तभी मैं हर क्षण कहता हूँ

बस खुद में सिमटा रहता हूँ 
कि मुझे किसी से प्रीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं

जय श्री कृष्ण

नरेश मधुकर