नरेश रघानी मधुकर के कोमल ह्रदय से स्फुटित कविताएँ जो उनकीपुस्तक ‘ज़ज्बातनामा ’ के रूप में हमारे समक्ष आई हैं वह किसी भी पाठक को एक झरने के सदृश्य अपने साथ बहा लेने को सक्षम हैं . समाज के कार्यों से जुड़े एक कर्मठ सेवी होने के नाते, मुझे लगा की शायद कविता उनके बस की बात नहीं होगी लेकिन उन्होंने मुझको गलत साबित करते हुए एक से एक ऐसी रचनाओं का सृजन किया कि बरबस ही मुख से ‘ वाह ’ और 'अति सुंदर' जैसेशब्द निकल आतें हैं अपनी समस्त भावनाओं के साथ न्याय करते हुए उन्होंने हमारे सामने एक काव्य रचनाओं का भंडार रख दिया है. उनकी यह काव्यधारा अब तक की जीवन यात्रा के दौरान की प्यास , थकान , प्रेम, आशा-निराशा, दर्दऔर देशप्रेम के अनुभवों एवं अनुभूतिओं को समेटे उनकी इन विचारों कीअभिव्यक्तीओं को ग़ज़ल, कविता और शेरो -शायरी के माध्यम से पाठको तक पहुँचाने का उनका एक प्रशंसनीय प्रयास है. पर कंही न कंही इस बात का आभासजरूर होता है कि कवि शायद निराशावादी तो नहीं पर मैं समझता हूँ कि उनमे निराशाया कुंठा कि बजाय वैरागीपन जरूर है. उनकी कुछ रचनाएँ जैसे कि ‘ मृगतृष्णा ’, ‘सफ़र ’, रास्ता और दूरी ’, ‘ मदहोशी लिए फिरता हूँ ’ ‘ए मेरे रहनुमा ’,‘इन्दर्धनुष' रात, वक्तबहुत कम है, याद तथा और अन्य कवितांए जीवन से प्राप्त हुए अनुभवों का एक निचोड़ है .
एक तरफ जहाँ नरेश जी लिखते हैं :-
मैं हादसे लिखता गया और फसाना बन गया
खुद से बाते ख़त्म की ,जज़्बात नामा बन गया....... या
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न जमीं मिली न आसमान मुझको
न मिली मंजिल न कारवां मुझको ...........
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वंही कवि एक प्यार का दूत बन कर भी उभरता है:- .
नफरतों से कोई जीत न पाया दुनिया
मोहब्बत एक बार बेशुमार करके देख
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कवि, देश प्रेमी होने के साथ साथ के एक दृढ निश्चयी व्यक्तिव भी हैं:
खुद ब खुद मंजिल का पता जान लेते हैं
दीवाने कर गुजरते हैं जो दिल में ठान लेते हैं
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मेरा मानना कि एक कवि कि सफलता का राज़ उसकी सत्यवादिता एवं स्पष्टवादिताहै. जज्बातनामा इसमें खरा उतरती है. मुझको इसमें कोई संदेह नहीं कि 'जज्बातनामा' पाठकों को तरह तरह के जज्बातों से रूबरू करा उनको दिलों में एक पैठ बनाने मेंकामयाब होगी..
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक- कवि