खुद से बाते ख़त्म की ,जज़्बात नामा बन गया
लगता नहीं डर मुझे , बदले हुए मौसम का अब
पतझड़ों में घर मेरा , पंछीयों का ठिकाना बन गया
इस जहाँ के शोर में , किसी ने मेरी न सुनी
दर्द जब हद से बड़ा , तो तराना बन गया
लगता नहीं मुश्किल मुझे ,रूठ जाना उनका अब
मिलना बिछड़ना प्यार में , किस्सा पुराना बन गया
महफिलों में मुझ पे उठा करती थी उंगलियां
आज आया वक़्त तो , साकी ज़माना बन गया
नरेश 'मधुकर'
copyright 2011
इस जहाँ के शोर में , किसी ने मेरी न सुनी
दर्द जब हद से बड़ा , तो तराना बन गया
लगता नहीं मुश्किल मुझे ,रूठ जाना उनका अब
मिलना बिछड़ना प्यार में , किस्सा पुराना बन गया
महफिलों में मुझ पे उठा करती थी उंगलियां
आज आया वक़्त तो , साकी ज़माना बन गया
नरेश 'मधुकर'
copyright 2011