जब ख्वाइश ख़्वाबों के सांचे में ढल जाती हैं
खुशनुमा जिंदगियां अक्सर बदल जाती हैं
दौड़ मोहब्बत की जीत पाना मुश्किल हैं इसमें
हकीकत हसरत से आगे निकल जाती हैं
ये दिलवालों का शहर है दिमागदारों हैरान मत हो
सिक्के नहीं यहाँ,प्यार की कौडियाँ भी चल जाती हैं
नहीं मुमकिन इस तपिश को थामे रखना ऐ दोस्त
ऐसी कोशिशों में अक्सर उंगलियाँ जल जाती हैं
न देखो मुड़ कर मेरी परवाह न करो 'मधुकर'
मेरी वफाएं खता खाकर अक्सर संभल जाती हैं ...
नरेश 'मधुकर'
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