हर शख्स तय खुद का सफर करता हैं
चाहे मुश्किल हो फिर भी बसर करता हैं
गालियाँ कितनी भी हो चाहे दिल के करीब
हैसियत उनकी तय ये ज़ालिम शहर करता हैं
दर्द बतलाना किसी को न मुमकिन हो शायद
तासीरे दर्द तय अलविदा का पहर करता हैं
दिल दुखाये मेरा ये इस दुनिया का क्या दम
आह निकलती हैं जब कोई अपना ये कहर करता हैं
लिखता हू स्याही से दर्द कागज़ पे मधुकर
देखें कितना ये इस दुनिया पे असर करता हैं
नरेश मधुकर
2013
चाहे मुश्किल हो फिर भी बसर करता हैं
गालियाँ कितनी भी हो चाहे दिल के करीब
हैसियत उनकी तय ये ज़ालिम शहर करता हैं
दर्द बतलाना किसी को न मुमकिन हो शायद
तासीरे दर्द तय अलविदा का पहर करता हैं
दिल दुखाये मेरा ये इस दुनिया का क्या दम
आह निकलती हैं जब कोई अपना ये कहर करता हैं
लिखता हू स्याही से दर्द कागज़ पे मधुकर
देखें कितना ये इस दुनिया पे असर करता हैं
नरेश मधुकर
2013
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