Tuesday, July 31, 2012

तू रूठा

जब तू रूठा जब तू रूठा 
तब जग छूटा रे जग छूटा

अंतर्मन को लगी घुटन 
लगे सब झूठा रे सब झूठा 

टिकी थी तेरी नज़र जिधर 
तारा टूटा रे तारा टूटा 

दोस्त क्या और दुश्मन क्या 
सबने लूटा रे सबने लूटा

जब जीते गए जग से मधुकर
तब घर छूटा  रे घर छूटा ...

(यह पंक्तियाँ भक्त और भगवान के बीच की बात है )
© 2012 नरेश राघानी 'मधुकर

No comments:

Post a Comment