क़र्ज़ अपने हिस्से का,सबको चुकाना है
देख कर वो मंज़र,रो पड़ेंगी कश्ती
माझी हाथ पकड़ेगा,बहुत दूर जाना है
कुछ कट चुकी है और कुछ है बाकी
ज़िन्दगी का बस ,इतना सा फ़साना है
कहता हूँ दर्द कागज़ से,क्या गुनाह करता हूँ
इबादत है मेरी,मुझे किसको सुनाना है
मिलता है खुद ,खुद से मिलने पे 'मधुकर'
ये दस्तूर है , और सदियों पुराना है ...
नरेश'मधुकर'
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